Saturday 31 March 2018

तमन्ना

नशा ये इश्क़ का यूं चढ़ा
बावरी सी फिरूं और चाहूँ
महफ़िल का जाम बन
तेरे लबों को छूना

सर्द हवा बन
बदन की खुशबू चुराना
लहू की बूंद बन
तेरे भीतर समाना

तू ही दुआ है और
तू ही आरजू
सोचती हूँ
ये जीवन तुझ पे वार दूं

तमन्ना है कि बस
मेरे हाथों में तेरा हाथ हो
और आखिरी सांस तक
तू ही मेरा अहसास हो।

                              -शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...