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Showing posts from June, 2020

रामवती

बादल घिर आये है, सामने की तरफ आसमान का रंग स्याह हो गया है। तेज हवा ने सारे बादलों को आसमान में एक तरफ इकठ्ठा कर दिया है। मन ही मन में सोच रही थी आज बहुत बारिश आएगी। मैं छत पर खड़ी बादलों की ओर देख रही थी,कि तभी एक आवाज़ आयी - बारिश आयेगी और मेरी छत उड़ जायेगी। मैंने नीचे की ओर देखा तो रामवती थी। वो एक बड़े से पत्थर के ऊपर कपड़ों पर साबुन लगा रही थी। . . रामवती और मैं एक दूसरे को तीन महीनों से जानते है। 'जानते है' ये कहना ठीक नही होगा; बल्कि ये कहना- 'तीन महीनों से हम एक दूसरे को यूँ ही देखा करते है' ज्यादा ठीक होगा। आज तक किसी ने दूसरे से एक लफ्ज़ भी नही कहा। मैं जब भी छत पर टहलती हूँ, वो नीचे कुछ काम कर रही होती है और नजरें मिल जाने पर दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते है। बस इतना ही संवाद है हम दोनों के बीच।  रामवती की उम्र यही कोई 25-26 साल होगी या फिर इससे भी कम। उसके 2 बच्चे है, जिनके साथ वो कंस्ट्रक्शन की साइट पर बने ईट के बने कामचलाऊ घर में रहती है जिसकी छत पर एक प्लास्टिक की पन्नी लगी है। . . रामवती के लफ़्ज़ों को सुनने के बाद मैं सोच रही थी कि काश! इतनी ही बारिश आ...

साथ में जिये लम्हें

साथ में जिये लम्हें भीतर के किसी कोने में थोड़ी जगह घेरे रहते है और शुष्क मौसम से ऊब चुकी साँसों को  हवा देकर जिंदा रखते है.... - शालिनी पाण्डेय 

रोज कुछ

रोज कुछ उम्मीदें बिखर जाती है कुछ सपने अधूरे रह जाते है और कुछ वादे दहलीज की ओर टकटकी लगाए दम तोड़ जाते है। - शालिनी पाण्डेय