तन्हाई में भी तन्हा ना होने दे मोहब्बत, रुसवाइयों में भी रुसवा ना होने दे मोहब्बत। यादों की एक महफ़िल है मोहब्बत, जब तू नहीं तो तेरा जिक्र है मोहब्बत। -शालिनी पाण्डेय
जब मैं तुम्हें सोचते सोचते हो जाती हूँ निःशब्द, मुझे जाने क्यूं लगता है बिन लफ़्ज़ों के भी कह आयी हूं तुमसे सारी दास्तां। अब तुम ही बताओ क्या तुमने सुनी! - शालिनी पाण्डेय
आग से तपी वो सूरत जिसे एक टक देखने रहने को जी चाहता है। सर्द हवाओं से जकड़ रहा वो चेहरा जिसे लौ से सुलगाने को जी चाहता है। पतझड़ से सूख रहे वो होंठ, जिन्हें चूमने को जी चाहता है। ब...