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Showing posts from December, 2018

नया साल

जिसे तुम कहते हो नया साल मुझे तो उसमें कुछ ऐसा नहीं दिखता जिसके लिए मैं जश्न मनाऊँ ये सुबह भी बीती सुबहों जैसी अकेली ही थी चाय की चुस्कियां लेते वक़्त आज भी सिर्फ यादें ही सा...

किरदार

ना सिग्नल थे ना सोशल मीडिया ना दोस्तों का हुजूम ना ही पहचाना शहर बस तुम थे और जीवन का सफर तुम तुम जैसे थे मैं मैं जैसी ना कोई वादे थे ना कोई बंदिशें बस दो किरदार थे अपने आप को ख...

जिंदगी

लंबे सफर में जब मीलों तक कोई आस पास नहीं दिखता लोगों से भरे हुए सड़क पर जब शोर नहीं सुनाई देता सिर्फ तभी मुझे कितनी साफ नजर आती हो तुम जिंदगी। -- शालिनी पाण्डेय

सर्दी के एक रोज

सर्दी के एक रोज मैं ताप रही थी एक रिश्ते की गर्माहट को आंखे मूंदे थाप रही थी साथ वाली तस्वीर को  आती सांस के साथ पाट रही थी बीच के फैसलों को और लकीरों पर सजा रही थी तुम्हारे न...