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Showing posts from July, 2019

क्यों ना

क्यों ना नीरस उदासी वाले पन्नों को उखाड़ फेंकने के बजाय एक छन्नी की तरह जीवन में लगाया जाये ताकि कुछ एक लोग थोड़ा और करीब आ पाये, और कुछ थोड़ा दूर चले जाये। ~ शालिनी पाण्डेय

बहुत डरावना है

बहुत डरावना है महसूस कर पाना साँसों की अधीरता बहुत डरावना है महसूस कर पाना जीवन की भंगुरता बहुत डरावना है महसूस कर पाना जीने की विवशता। ~ शालिनी पाण्डेय

रोज थोड़ा

अभी कुछ दिन पहले की बात है जब समेटा था यार के विश्वास को तो खो दिया था स्वार्थ को जब समेट रही थी प्रार्थना की ऊर्जा को तो खो रही थी काले डर की छाया को जब बोने जा रही थी प्यार के बी...

अनजाने अवसाद से

धूल को देखा है कभी कैसे वो चुपचाप आकर बैठ जाती है अलमारी में रखी किताबों के ऊपर जो कई दिनों से नहीं पढ़ी गई और हमें जरा भी भनक नहीं लगती धूल के किताब में आ जाने की कई दिनों बाद ज...

देखो

तुमने विरह का संगीत सुना है अब मिलन का जश्न भी देखो तुमने मुझे अनाशक्त देखा है लो अब अब आशक्त भी देखो। ~ शालिनी पाण्डेय

जन्म

विरह जब तक तक था तो कविताएँ जन्म लेती थी अब मिलन आया है तो आकांक्षाएं जन्म ले रही है। ~ शालिनी पाण्डेय

रात भर

टूट टूट कर नींद तेरी यादों से बिस्तर भरती रही रात भर धड़कन तेरा नाम गुनगुनाती रही रात भर लब एक बोसे को तड़पते रहे रात भर बदन तेरे आगोश के लिए सिमटता रहा रात भर और साँसे बिछड़न का ...

तेज हवा

तेज हवा सा तू टकराता है बारिश की बूंद बन छू जाता है सोये नन्हें बीजों को जगाकर अंकुरित हो पेड़ बन आता है । ~ शालिनी पाण्डेय