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Showing posts from October, 2019

सलीका

तेरे बदन की ओस से भीगी हुई साँसें, जो रेत के कणों को जोड़कर,  मेरी शक़्ल को मूर्त बनाती है.... नदी के छोर सी तेरी बाहें, जो इच्छाओं को स्वछंद बहाती हुई, मुझे बचाये रखती है बिफरने से..... और हर वक़्त साथ चलता, तेरी खुशबू से महकता ये आशियाँ, जीवन को अहसास देता है कि तू एक सलीका है, जिंदगी जीने का..... - शालिनी पाण्डेय

चलो ना मेरे साथ

तुम चलो ना मेरे साथ किसी पहाड़ पर, वहीं बसायेंगे संसार प्यार और विश्वास का ।। वहां बर्फ की नदियां सींचती होंगी हमारे आँगन को, चीड़ के पत्तों से पटे रास्ते ताकते होंगे हमारी राह को, प्रभात किरणें आतुर होंगी हमारा माथा चूमने को, देवदार की छाव फैली होगी हमें बाहों में कसने को, वहां नीले अम्बर की चादर ओढ़े हरे बुग्याल के सीने से लगकर हम लेट लेंगे, नदियों के बहाव से उत्पन्न संगीत को सुनेंगे, और संध्याकाल में चोटी से उतरते सूर्यास्त को छितिज पर बैठकर विदा देंगे । - शालिनी पाण्डेय

बुनना

किसी रोज मैं घण्टों पियानो के पास बैठ कर संगीत बुनने का प्रयास करती हूं, सिर्फ इसलिए कि मुश्किल छणों में इसकी धुन से तुम्हारे मन को गुंजायमान कर सकूँ । - शालिनी पाण्डेय