तुम और ये यात्राएँ — दोनों ही मेरे अस्तित्व के दो अभिन्न अध्याय हो और मेरे हृदय के सबसे अंतरंग कोनों में बसते हो। एक तुम हो, जो मेरे भीतर की नीरवता में संगीत भरते हो; और दूसरी ये यात्राएँ हैं जो मुझे उस संगीत की लय पर चलना सिखाती हैं। इन पहाड़ों की चुप्पी में, इन वादियों की सर्द हवा में, किसी अनकहे प्रेम का स्पर्श टिका रहता है — जैसे प्रकृति स्वयं हमारे हृदय की प्रेम रूपी भाषा को जानती हो। सुबह की पहली किरण में चमकती हुई, बर्फ़ से ढकी पर्वत चोटियाँ, मुझे बार-बार याद दिलाती हैं कि ऊँचाई पाने के लिए कठिनाई से गुजरना ही पड़ता है। जब कभी हम उन ऊँचे-नीचे रास्तों पर साथ चलते हैं, कभी फिसलते हैं, कभी थमकर साँस लेते हैं, तो लगता है जैसे जीवन का अर्थ भी यही है — गिरना, सम्भलना, और फिर साहस बटोर कर साथ आगे को बढ़ते जाना। सर्द हवाओं में जब अंगुलियाँ सुन्न हो जाती हैं, तब तुम्हारे हाथ की गर्माहट किसी सूरज की पहली किरण-सी लगती है। तुम्हारी उपस्थिति उस निःशब्द वातावरण में भी शब्दों से अधिक बोलती है। और जब रात उतरती है — पहाड़ों पर, पेड़ों के झुरमुटों पर, हमारे चेहरों पर — तो तारों की टिमटिमाहट...
शब्द मेरी भावनाओं के चोले में