Monday 17 July 2017

ठहरा हुआ सा मन

चली हूँ आज एक सफर पर
जो बना है टेढ़े रास्तों से
कल कल करती नदियों से
झर झर झरते झरनों से
सर सर करती पवन से
हरी हरी हरियाली से
बूंद बूंद बरसते बादलों से

बहुत से पड़ाव आये इस सफर में
हर एक पड़ाव दूसरे से अलग था
पर अपने में सम्पूर्ण लगा 
हर पड़ाव पर मैं कुछ देर ठहरी
इधर उधर देखा, महसूस किया
और जो बच गया उसे यादों में संजो लिया

अलग ही रोमांच था पूरे सफर में
न केवल मंजिल
पर रास्ते भी मन को लुभा रहे थे
ना आगे का डर सताता
ना पीछे की चिंताएं जला रही थी
और मन मानो ठहर सा गया था
केवल गुजरते पलों पर ।।

-शालिनी पाण्डेय

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