चली हूँ आज एक सफर पर
जो बना है टेढ़े रास्तों से
कल कल करती नदियों से
झर झर झरते झरनों से
सर सर करती पवन से
हरी हरी हरियाली से
बूंद बूंद बरसते बादलों से
बहुत से पड़ाव आये इस सफर में
हर एक पड़ाव दूसरे से अलग था
पर अपने में सम्पूर्ण लगा
हर पड़ाव पर मैं कुछ देर ठहरी
इधर उधर देखा, महसूस किया
और जो बच गया उसे यादों में संजो लिया
अलग ही रोमांच था पूरे सफर में
न केवल मंजिल
पर रास्ते भी मन को लुभा रहे थे
ना आगे का डर सताता
ना पीछे की चिंताएं जला रही थी
और मन मानो ठहर सा गया था
केवल गुजरते पलों पर ।।
-शालिनी पाण्डेय
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