तुम्हारा आंचल जब
मुझे बचा लेता था
भयंकर अवसाद से
तुम्हारी गोद जब
मुझे सुस्ताने देती थी
थका देने वाली भागदौड़ से
तुम्हारा पसीना जब
मुझे एहसास नहीं होने देता था
जी को जला देने वाली गर्मी का
तुम थी तो उत्साह था
सफर कुछ आसान था
हर दुःख तुम मुस्कुराते हुए
अपने दामन में छुपा लेती थी
तुम्हारा अपार स्नेह
जिसके बारे में तुम कहती नहीं थी
तुम्हारे वो आँसू
जिन्हें तुम पानी की तरह पी जाती थी
शायद अब समझ आते है
जब तुमसे मैं इतनी दूर हूं।
--शालिनी पाण्डेय
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