लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से दोपहर की धूप में वो सड़क किनारे पड़े कचरे में से अपने काम की चीजें इकट्टा कर रहा था। कुछ खाली बोतल, कुछ गत्ते के टुकड़े उसने बीन कर अपनी साईकल के दोनों तरफ लगाये बड़े से एक कट्टे में भर लिए। कुछ देर के लिए उसका चेहरा मेरी तरफ को मुड़ा। उसके बाल कुछ काले कुछ सफेद से थे, वो सवरे हुए नहीं थे। नाक को ढकने के लिए, एक चेक वाला रुमाल उसने चेहरे पर बांंधा हुआ था। उसके कपड़े और हाथों पर काफी धूल जमा थी। काम की चीजों को बीन लेने के बाद आगे बढ़कर, उसने साईकल को सड़क के किनारे एक छाव पर लगाया, उसी जगह जहां पहले चाय की टपरी हुआ करती थी लॉकडाउन से पहले। एक छोटी प्लाटिक की खाली बोतल उसने अपने साईकल के आगे वाले बैग में से निकली और वो दूध की दुकान के सामने की ओर कुछ कदम चला। सामने एक पानी का नल था, उसने टोटी खोली लेकिन पानी नहीं आया। दुकान में से एक बच्चा बाहर आया और बच्चे ने पास लगे मोटर के बटन को दबाया और पानी की एक धार उसके हाथों पर गिरने लगी। उसने सिर्फ पानी से अपने हाथ धोये और अपनी छोटी सी बोतल में पानी भरकर पीने लगा। फिर उसने खाली बोतल को अपने साईकल के...