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Showing posts from May, 2020

उदासियां

खिड़कियों को लाँघ कर किवाड़ों को फांद कर झरोखे की जालियों से भीतर चली आती है उदासियां उन्हें कोई बुलावा नहीं देता इसलिए, बेवक़्त  आ जाया करती है उदासियां। - शालिनी पाण्डेय 

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से: 1

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से दोपहर की धूप में वो सड़क किनारे पड़े कचरे में से अपने काम की चीजें इकट्टा कर रहा था। कुछ खाली बोतल, कुछ गत्ते के टुकड़े उसने बीन कर अपनी साईकल के दोनों तरफ लगाये बड़े से  एक कट्टे में भर लिए। कुछ देर के लिए उसका चेहरा मेरी तरफ को मुड़ा। उसके बाल कुछ काले कुछ सफेद से थे, वो सवरे हुए नहीं थे। नाक को ढकने के लिए, एक चेक वाला रुमाल उसने चेहरे पर बांंधा हुआ था। उसके कपड़े और हाथों पर काफी धूल जमा थी।  काम की चीजों को बीन लेने के बाद आगे बढ़कर, उसने साईकल को सड़क के किनारे एक छाव पर लगाया, उसी जगह जहां पहले चाय की टपरी हुआ करती थी लॉकडाउन से पहले। एक छोटी प्लाटिक की खाली बोतल उसने अपने साईकल के आगे वाले बैग में से निकली और वो दूध की दुकान के सामने की ओर कुछ कदम चला। सामने एक पानी का नल था, उसने टोटी खोली लेकिन पानी नहीं आया। दुकान में से एक बच्चा बाहर आया और बच्चे ने पास लगे मोटर के बटन को दबाया और पानी की एक धार उसके हाथों पर गिरने लगी। उसने सिर्फ पानी से अपने हाथ धोये और अपनी छोटी सी बोतल में पानी भरकर पीने लगा। फिर उसने खाली बोतल को अपने साईकल के...

एक वक्त था

एक वक्त था जब शाम कल्पनाओं में  डूबी रहती थी छुट्टी का दिन  घाट किनारे गुजारा जाता था एक वक्त था जब तुम्हें सामने पाकर  खुशियां सम्हाले ना सम्हलती थी चाय पर बातों का सिलसिला  खत्म नहीं होता था और अब सिर्फ वक़्त है ना बातें है, ना तुम हो,  ना घाट का किनारा,  ना ही रंगीन शामें है... अब बस इन्तज़ारी है हालातों के सुधर जाने की और किसी रोज फिर से तुम्हें गले लगाने की। - शालिनी पाण्डेय 

मजदूर

जब आर्थिक गतिविधियां चालू थी तब मजदूर जुटे हुए थे हम सभी के घरों की  नींव और छतों को बनाने में और अब  जब सब कुछ रुका हुआ है  वो चले जा रहे है मीलों दूर उन घरों की ओर जिनके भीतर इस बरसात भी पानी घुस आएगा... - शालिनी पाण्डेय 

संभावनाएं

जटिल परिस्थिति, घनघोर उदासी और अनमनेपन से बिखर रहे जीवन को; तुम्हारा साथ  नई संभावनाओं, उजली आशाओं से भर जाता है....  - शालिनी पाण्डेय

नदी और नाव

तुम्हारा और मेरा प्रेम है नदी और नाव का संयोग.. तुम विशाल,  अविरत बहने वाली नदी हो  और मैं लकड़ी से बनी तुम्हारे ऊपर ठहरी हुई नाव हूं मेरे बिना भी तुम हो और रहोगे... लेकिन तुम्हारे बगैर मेरा हो पाना तो संभव नहीं... - शालिनी पाण्डेय

सफेद दीवार

जिंदगी, कमरे की उस सफेद चमकती दीवार की तरह हो चली है, जिस पर गोंद के दाग छूटे रह जाने के डर से, हम अपनी पसंदीदा तस्वीरें और पोस्टर चिपकाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। - शालिनी पाण्डेय