पहाड़ की यादों को समेटकर मैंने बना लिया है छप्पर, खरीद ली है कुछ भेड़े जिन्हें चराते हुए, फाग गाते हुए, बुग्यालों और गधेरों को पार कर मैं रोज़ थोड़ा -थोड़ा चली आती हूं तुम्हारी ओर को सांझ अपने घर में बिताने.... - शालिनी पाण्डेय
शब्द मेरी भावनाओं के चोले में