तुम रहते हो पास मेरे
खुशी और गम में साथ मेरे,
कभी पलकों में छुप जाते हो,
कभी आंखों में उतर आते हो,
एक पल को साँसों में समाते हो,
मीठी सी मुस्कान बन आते हो,
कभी अन्तर्मन को छू जाते हो,
कभी नीर बन नैनों से बह जाते हो।
एकांत में भी तुम नजर आते हो,
भीड़ में कही बिछड़ से जाते हो,
तन्हाइयों में दबे पांव चले आते हो,
कुछ बेचैनियाँ सी छोड़ जाते हो।
किसी पल छेड़ते हो धड़कनों का साज,
अगले पल में फिर ले आते हो विषाद,
तुम हो स्मृति और विस्मृति दोनों ही में
बड़े अजब से ये द्वंद है इस रिश्ते में
- शालिनी पाण्डेय
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