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Showing posts from September, 2018

खोजी मन

ये हर वक़्त क्या खोजता रहता है तू क्या ढूढ़ता है मेरे वजूद को ? या तराशता है मेरी शक़्ल को ? क्या खोजता है मेरे दर का रास्ता ? या मुझे पढ़ने की कोई किताब ढूढ़ता है ? या ढूढ़ता है हमारे उस आशियां की चाभी जो खो दी थी सर्कस देखते हुए कभी तो बता - ये हर वक़्त क्या खोजता रहता है तू? -शालिनी पाण्डेय

फूल और पात

कभी खिल जाती हूँ फूल सी कभी झड़ जाती हूँ पात सी मैं रोज अधूरी ही रह जाती हूं अनकही किसी बात सी। -शालिनी पाण्डेय

अनबूझी पहेली

कभी शांत सी कभी उदास सी कभी आनंदित सी कभी हताश सी मैं कभी बिखरी सी कभी सिमटी सी कभी पूनम सी कभी अमावस सी मैं कभी नदी सी कभी सैलाब सी कभी बयार सी कभी चक्रवात सी मैं कभी उथले शब्...

यादों की दस्तक़

तेरी यादों की दस्तक़ मेरी दहलीज़ पर अब तो रोज ही होती है घण्टों ये अब मुझसे बातें करने लगी है घर के कोनों पर इकट्ठा भी होने लगी है ज्यादा हो जाने पर किवाड़ों से झांकने लगी है इनम...

रात के घने अंधेरे में

रात के घने अंधेरे में भी जाने कैसे लिख लेती है चादर पर तेरा नाम ये अंगुलियां करवटे लेते हुए जाने कैसे पहुँच जाते है तेरे लब मेरे ख्वाब के जाम पर सिरहाने के पास ही जाने कैसे न...