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Showing posts from February, 2019

रिक्तता

रिक्तता भीतर की जो कि भरना चाहती है कविता, ग़ज़ल, प्यार, दोस्ती, यात्रा, किताब, संगीत, कला, युद्ध, विजय आदि जैसे माने है इसे भरने के बावजूद इसके भी नहीं भर पाती है और हमारे ही किसी ...

इतिहास का विषय

पहाड़ से मैदान की ओर लगातार बह रहा लोगों का हुज़ूम एक दिन बना देगा पहाड़ के जीवन को सिंधु घाटी की तरह इतिहास का एक विषय जो पढ़ाया जाएगा बिना समझे ही स्कूल में हमारे द्वारा। - शाल...

क्यूं

अब जब मैं निकल आई हूं तुमसे दूर इतना दूर कि सूरज की रोशनी भी मुझे नहीं छू सकती अब तुम क्यूं मुझे वापस ढूढंने निकले हो? --  शालिनी पाण्डेय

घर

कुछ करने की चाह में कुछ बनने के प्रयास में कुछ पा सकने की आस में मैंने देखा है कई बार अपने घर को दूर धुंध में ओझल होते हुए। - शालिनी पाण्डेय

शीशे की नाराजगी

मेरे घर का शीशा कितना नाराज हुआ जब तुम आये थे तुम बिल्कुल मेरे प्रतिबिंब जैसे थे हाड़ मास से नहीं वरन संवेदनाओं से। - शालिनी पाण्डेय

घटनाएं

ये रोजमर्रा की घटनाओं वाली दुनिया हर पल कुछ घट रहा है और साथ ही घट रहे है जीने के दिन भी। - शालिनी पाण्डेय

इमारत

सोचती हूँ तुम्हारे लिए एक इमारत बनाऊ कंकड़ पत्थर संगमरमर से नहीं वरन शब्दों, कलम और कविताओं से जहाँ तुम दुनिया से थक जाने पर आराम कर सकोगें। - शालिनी पाण्डेय

उसकी आंखें

पहली बार मैंने उसकी आँखों को पढ़ा उसकी आँखें बया कर रही थी वो सब जो वो जुबान तक ना ला पाया था देखा मैंने स्नेह के उमड़ रहे सैलाब को जिसमें वो तैरना सीख चुका था और मैंने महसूस कि...