वर्षों से सजाया था जो सपना ,
सींच सींच कर बनाया था जिसे अपना।
आज वो लगभग टूट सा गया ,
मेरे हाथों से लगभग छूट सा गया।
वो टूटता रहा ,
वो बिखरता रहा ,
मुझसे दूर होता रहा
उसे एक भय से मैंने छोड़ दिया।
एक रोज किसी मोड़ पर मुझे वह मिला,
पास जाकर देखा तो जाना पहचाना लगा।
भागते हुए मैं बिखरे सपने के करीब गयी ,
उससे लिपटकर मई फूट कर रो पड़ी ,
मेरी सिसकिया सुन वो बोला,
तू कभी हिम्मत मत हार ,
कर चुनौतियों को स्वीकार ,
जीवन एक सँघर्ष हैं।
रोने से कुछ नही होगा ,
अपने लक्ष्य को बड़ा बना ,
इरादों को मजबूत बना ,
जुट जा उसे सफल बनाने में,
हालांकि रास्ते अभी धुंदले हैं ,
पर सूरज की किरणों से धुंध छट जायेंगी ,
राहें स्पस्ट होते नजर आयेंगी,
और तू अपनी मंजिल को पा जायेगी।
- शालिनी पाण्डेय
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