तुम मेरे जीवन में आये कविता की तरह वही कविता जो मेरी पसंदीदा थी शायद इसीलिए तुम्हें संजो के रख पाना भी उतना ही मुश्किल था जितना उस कविता के अर्थ को यथार्थ पर उतार पाना। -शाल...
पाने और खोने के इस खेल में जब निराशा हाथ आती है आंखें मूंद कर मैं तुम्हारा चित्र बनाती हूं और तुम्हारे इस स्पर्श से एक लौ जलती है जो मुझे अगली निराशा तक आशा का ताप दिये रहती ...
आदमियों से ठसाठस भरी शहरी दुनिया हर दिन नए चेहरे और मेरे पहाड़ में रह गयी हैं सिर्फ आँखें बूढ़ी, जर्जर आँखें जो इंतज़ार में है पुराने चेहरों के लौट आने के। -शालिनी पाण्डेय