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Showing posts from March, 2019

गीत जैसे

गीत जैसे गुनगुनाते हो तुम मेरे भीतर और घोल जाते हो ख़ुद को मुझ में। - शालिनी पाण्डेय

तज़ुर्बा

मुझे तज़ुर्बा था जीवन को बेफ़िक्री से जीने का और तुम्हें तज़ुर्बा था सोच सोच के जीने का दोनों अलग है मगर है तो तज़ुर्बे ही। । -शालिनी पाण्डेय

कविता की तरह

तुम मेरे जीवन में आये कविता की तरह वही कविता जो मेरी पसंदीदा थी शायद इसीलिए तुम्हें संजो के रख पाना भी उतना ही मुश्किल था जितना उस कविता के अर्थ को यथार्थ पर उतार पाना। -शाल...

होली स्पेशल

आज जब आस पास के लोग गुलाल से चेहरे को रंग रहे थे मैं रंग रही थी अपनी रूह को तुम्हारे इश्क़ से। - शालिनी पाण्डेय

निराशा

पाने और खोने के इस खेल में जब निराशा हाथ आती है आंखें मूंद कर मैं तुम्हारा चित्र बनाती हूं और तुम्हारे इस स्पर्श से एक लौ जलती है जो मुझे अगली निराशा तक आशा का ताप दिये रहती ...

कुहासा

सर्द मौसम में जब कुहासे ने ढक लिया तो मैंने प्यार की लौ जलाई और झोंक दिए उसमें अपने सारे सपने एक-एक करके। - शालिनी पाण्डेय

चेहरे

आदमियों से ठसाठस भरी शहरी दुनिया हर दिन नए चेहरे और मेरे पहाड़ में रह गयी हैं सिर्फ आँखें बूढ़ी, जर्जर आँखें जो इंतज़ार में है पुराने चेहरों के लौट आने के। -शालिनी पाण्डेय