पाने और खोने के
इस खेल में
जब निराशा
हाथ आती है
आंखें मूंद कर
मैं तुम्हारा
चित्र बनाती हूं
और तुम्हारे
इस स्पर्श से
एक लौ जलती है
जो मुझे
अगली निराशा तक
आशा का
ताप दिये रहती है।
- शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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