जीवन की
उबड़-खाबड़ राह के एक मोड़ पर
किसी रोज तुम मिले
मिलना यूँ तो एक
क्रिया है
पर तुम्हारा मिलना
एक एहसास है
वो एहसास जो
बाधें रखता है
प्राणों को शरीर से
ठीक वैसे ही जैसे
डोरें बाधें रहती हैं
नाव को छोर से
खाली वक़्त में
- शालिनी पाण्डेय
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