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Showing posts from November, 2018

रिक्तता

कही भीतर कुछ है जो भरने की कोशिश में लगा है पर इसके बावजूद भी खाली सा रह जाता है। दिन की रोशनी में लगता है पूरा हो रहा है लेकिन रात फिर इसे अधूरा कर जाती है क्या ये तुम्हारे आन...

मैं तुझे जोड़ देती हूं

मैं तुझे जोड़ देती हूं हर उस कविता से हर उस कहानी से हर उस गीत से जिनमें आस है मिलन की मैं तुझे जोड़ देती हूं हर उस शेर से हर उस ग़ज़ल से हर उस दृश्य से जिसमें टीस है बिछड़न की मैं तुझ...

टक्कर

राह चलते वो मुझसे टकराई थोड़ा पास आयी और मुस्काई मेरी रूह बेनूर हो गई नजदीकियां जब यूँ टकराई -शालिनी पाण्डेय

कौन

मैं कौन हूं? ये प्रश्न बार बार मेरे सामने आता है कई बार खुद ब खुद कई बार लाया जाता है मैं कविता हूं नहीं, मैं कहानी हूं जिसका अंत होता है मैं क्या हूं? क्या मैं सचमुच कुछ हूं? क्य...

वक़्त के इंतजार में

वक़्त के इंतजार में दो राही ताक रहे थे राह सोच रहे थे कब आएगी राहें वो आसान ठहरे रहे आस लिए पर ढल गयी जीवन की सांझ अब यूं ही सबके लिए थोड़े आती राहें वो आसान। -शालिनी पाण्डेय

मैं

मैं तुम्हें बुनना चाहती थी लेकिन तुम उधड़ते गए मैं सम्हलना चाहती थी लेकिन गिरती रही मैं सुंदरता चाहती थी लेकिन जर्जर होती गई मैं तुम्हें सांसें देना चाहती थी लेकिन जल कर ख...

मैं चाहती थी

मैं चाहती थी तुम्हारी बाहें थामे लंबी सड़क पे चलना । तेरे काँधे पर सिर टिकाये समुद्र को देखना । मैं चाहती थी तुम्हारे साथ तन्हाई के कुछ लम्हें बांटना । सीमाओं को लांघकर तु...

टूटना

मैं बिगाड़ देना चाहती हूं तुम्हारे चित्र को लेक़िन इस क़यास में वो बनता ही जाता है । मैं बिखेर देना चाहती हूं तुम्हारे होने के अहसास को पर हर बिखराव के साथ वो गहराता जाता है। ब...

तुम

तुम हमेशा भागते रहे मुझसे और इस करीबी से लेकिन मैं कहाँ जाती मेरे पास तो ये भी नहीं बचा। अब तुम ही बताओ क्या कोई खुद से भाग पाया? -शालिनी पाण्डेय

तुम

जब तुम थक जाओगे लुक्का छिप्पी खेलते हुए या फिर पा लोगे उसे खोजते खोजते शायद तब तुम अहसास हो मैंने तुम्हें पहले ही खोज लिया था बस तुम ही नहीं समझे। -शालिनी पाण्डेय

मैं तुझे खोजती हूं

मैं तुझे खोजती हूं, हर जगह खोजती हूं, कोरे पन्नों में, उर्दू के हर्फों में, पाश की कविताओं में, साहिर के गीतों में, जगजीत की गज़लों में, जॉन के शेरों में, रेख़्ता की शायरी में, आषाढ़ के एक दिन में, इतना ही काफी नहीं मैं फिर तुझे खोजती हूं गलियों में, तस्वीरों में, अनजान चेहरों में, बातों में, मैं तुझे ढूढ़ती हूं कांपती ठंड में, घुप अंधेरे में, बीतते पलों में, आते ख्यालों में, खुद को भी इतना नहीं खोजा जितना तुझे खोजती हूं जाने क्यूं मैं बार - बार तुझे ही खोजती हूं। -शालिनी पाण्डेय

तठस्थता

तुम्हारे दूर होने पर भी मैं भावों में डूबी रहती हूं और मेरे समीप होने पर भी तुम इतने तटस्थ कैसे रह लेते हो? -शालिनी पाण्डेय