हेलो, अक्टूबर की सुबह मैं आज बिछड़ रही हूं इन दीवारों से जिन्होंने मुझे सहेजे रखा था मार्च की अंधेरी रातों में आज मैं बिछड़ रही हूं उस एकांत की स्याही से जिसके रंगों में सरोब...
लो आ गयी, तुम्हारी याद को चाय में घोलती, बरसात की ये शाम.... जो गाते हुए बौछारों का संगीत, मेरी खिड़की के बाहर, धीमे-धीमे गुजरती है... और अंधेरे होने तक, गड़ाए रखती है, मेरी आंखों को, उस राह की ओर... जिसपे एक रोज तुम मिलने आये थे.... ~ शालिनी पाण्डेय
तुम जब मुझमें उतर आते हो, आंखों को नम कर जाते हो... खाली पड़े घर के कोनों पर, अपने हँसी बिखेर जाते हो... डायरी के कोरे पन्नों पर, कहानी सी लिख जाते हो... रुक सी गयी समय की सुइयों पर, बेल जैसे फैल जाते हो... कोरे बदन के कैनवास पर, प्यार को उकेर जाते हो... तुम जब मुझमें उतर आते हो, रूह को संतृप्त कर जाते हो... - शालिनी पाण्डेय
जब रात का अंधेरा हटेगा तेरा चेहरा साफ दिखेगा शिकन की सब रेखाएं माथे पर इकठ्ठी हो आएगी काले बालों के बीच फंसे सफेद रेशम चमक उठेंगे हथेलियों पर छपे संघर्ष के निशान उभर आएंगे ...
फ़कीरी का जीवन है अनुभवों से भरा हुआ और अमीरी का अनुभवहीनता से भरा हुआ। फ़कीरी का प्यार है भक्ति से उपजा हुआ और अमीरी का लोभ से उपजा हुआ फ़कीरी की दोस्ती बनी है मासूमियत से और अ...
खाली रातों में सन्नाटे के बीच अंधेरे से घिरी एक देह करवटे बदल रही है उसकी आंखों की नींद गायब है और दिल के दरवाजे पर किसी दस्तक की इंतजारी है - शालिनी पाण्डेय
कई बार मैं एकांत में बैठे घंटों तक तुम्हें एक टक देखती रहती हूं इस आस में कि साँसों के रास्ते भीतर आ कर तुम मेरी रूह को बस एक दफा छू जाओ। -शालिनी पाण्डेय
अगर हम सजीव है तो भावुक हो जाना एक स्वाभाविक घटना है वैसे ही जैसे कि उत्साहित हो जाना, बशर्ते सभ्यता के ढोंग ने हमें पूर्णतः अस्वभाविक ना बना दिया हो। - शालिनी पाण्डेय
प्रेरणा का स्रोत है गुरु आशा की लौ है गुरु सृजनात्मकता का नींव है गुरु विश्वास की उड़ान सिखाता है गुरु हिम्मत का पाठ पढ़ाता है गुरु अतः नमन का सदैव हकदार है गुरु ~ शालिनी पाण्...
पानी के झरने जब तुम ऊँचाई से गिरते हो तो बूंदों का एक धुआँ सा उड़ता है जिसमें उभर कर आती है ढेर सारी तस्वीरें उनमें से एक तस्वीर है मृत्यु की जो मुझे साफ नजर आती है, तस्वीर की गह...