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Showing posts from November, 2019

आगमन

आगमन, जीवन किरणों का.. प्रस्फुटन, नव पल्लवों का.. सृजन, नव कथाओं का.. उद्भव, श्वेत झरनों का.. विस्तार,  अंतर संवादों का.. आदान-प्रदान,भावनाओं का.. महकना, रजनीगंधा का.. सब परिणाम है, तुम्हारे प्रेम में होने का.. -  शालिनी पाण्डेय 

सरु चलो ना

किराये के मकान की बालकनी से, बाहर झांकते हुए, एक दिन, उसने पूछा - सरु, कौन सा संगीत, सुनाई देता है, तुम्हें यहां ? कौन सा नजारा, दिखता है, किवाड़ों को  खोलने पर ? कंधे पर,  थोड़ा सा खुद को टिकाकर, वो बोला- देखो ये दीवार... कितनी बड़ी है, लेकिन... एक भी  दूब का तिनका  नहीं उग पाता  इस पर... कितनी  विषाक्तता है, साँसों में, भीतर इन  कोरी दीवारों के..... कुछ देर,  वो मौन रहा.... और सांसे जुटाकर   पुनः बोल उठा-  सरु चलो ना, लौट चलते है, वहाँ को, जहां से आरंभ हुए... चलो ना, लौट चलते है, अपने पहाड़ की ओर.... -शालिनी पाण्डेय

हिमालय हूँ मैं

चीड़, ओक, देवदार की खुशबू लिए कर रहा सुगंधित श्वासों को, बुरांश, ब्रह्मकमल के फूल खिला महका रहा घर-आंगन को, मोनाल, ट्रैगोपान की चहक से रोज सवेरे जगा रहा तुमको, किलकारी भड़ल, हिम् तेंदुए की  पाल रहा तुम्हारे आंचल में, बन हिमाद्रियों का जन्मदाता  कर रहा सुसज्जित केशों को, पंच बद्री, पंचकेदार का रूप लिए ध्यान और तप का स्थान हूं मैं, पूनम के शशि सा तेज लिए, सुशोभित तुम्हारे ललाट पर, रहूंगा सतत ही मौन खड़ा, तुम्हारी प्रहरी, हिमालय हूं मैं। -शालिनी पाण्डेय 

बचपन

बचपन  चाहे किसी का भी हो अमीर का या गरीब का, वो ख़्वाब देखता है, उसे  अनगिनत ख़्वाब देखने दो, क्योंकि बचपन बनाता है एक सुदृढ़ नींव  कल्पनों की, बड़ा होने पर  जिसपर खड़ी होती है  इमारत यथार्त की। - शालिनी पाण्डेय 

पहाड़ को जाती सड़क

जंगल को  दो हिस्सों में बांटती ये सड़क सीधी  मेरे पहाड़ को जाती है, जहां अब भी बसती है गाड़, गधेरों, बाघ, बण, कौतिक, ब्या, त्यार के बारे में सुनाई मेरी आमा की कहानियां, जो जीवन पर्यंत  उन्होंने बटोरी, मेरे लिए ताकि सैंंन में रहकर भी मैं बनी रहूँ पहाड़ी, और उनके चले जाने के बाद भी देख पाऊं उन्हें  पहाड़ के किसी डाणे में  घास काटते हुए। - शालिनी पाण्डेय  For those who don't understand pahadi गाड़: Small seasonal river stream गधेरा: an abrupt or steep fall बण: Forest कौतिक: Fair ब्या: Marriage त्यार: Festival आमा: Grandmother सैंन: Plain area डाणा: Low mountain

मां

अपनी संतानों द्वारा उपेक्षित किये जाने पर भी स्वम् को प्रदत्त कर्तव्यों का निर्वहन माँ नहीं भूलती । - शालिनी पाण्डेय 

चुपके से

चुपके से बिना पैरों के निशान छोड़े, रिश्तों की  इस कोलाहल भरी दुनिया से कहीं दूर  निकल जाने को जी चाहता है।  - शालिनी पाण्डेय

झरना

थके हारे से दिनों में, जब नहीं समझ आता, कि  प्राण क्यों जीवित हैंं ? तब, किनारा पाने की आस में, उदासियां निचोड़ कर लिखे रात्रिगीत को सुनाने  मैं तुम्हारी ओर आती हूं, लेकिन,  दरवाज़े के ठीक सामने ठिठक जाती है चाल, मौन धारण कर लेते है शब्द..... और  गीत को  अपने भीतर समेटकर, मैं इस डर से  लौट आती हूं कि.... कहीं मेरी कलम से निकला  उदास स्याहियों का ये झरना देहली लांघ कर,  तुम्हारे भीतर ना बह निकले। - शालिनी पाण्डेय

ताउम्र

ताउम्र  सूरज बन कर मैं तुम्हारे छितिज पर उगता रहूंगा और  रोशन करता रहूंगा अंधेरे से कुम्हला रहे तुम्हारे हिस्सों को।। - शालिनी पाण्डेय 

राजा और रानी

हर दिन ये खेले उल्लास भरे मेले, मिट्टी का घर बना जश्न मना लेते है, कागज़ के पंख लगा  उड़ लेते है,  ये सुनते हुए कहानी भूल जाते है परेशानी  और खुद ही बन जाया करते है राजा और रानी। बाल दिवस की शुभकामनाएं । - शालिनी पाण्डेय

तुम्हारा श्रृंगार

मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं कुछ अच्छा लिखना चाहता हूं तुम्हारे साथ नदी के तीर बैठकर एक नया सवेरा बुनना चाहता हूं। पहाड़ की वादियों, झरनों,  बादलों, पिरुल और बांज को  एक माला सा पिरोकर तुम्हारा श्रृंगार करना चाहता हूं। हिम् आच्छादित शिखर में चांद और सूरज को परोस गंगा की लहरों को समेटकर  तुम्हारा सिरमौर बनना चाहता हूं। - शालिनी पाण्डेय