Tuesday 31 March 2020

ऊब

एक दिन उसने
झील किनारे
खड़े बूढ़े पेड़
से पूछा-

हर मौसम में
एक ही जगह 
खड़े खड़े 
तुम ऊब नहीं जाते?

पेड़ ठहाका मार कर हँसा
और बोला-
ऊबते इंसान है
कभी रिश्तों से,
कभी जगहों से,
कभी काम से,
कभी जीवन से,

मैं तो एक पेड़ हूं
मेरे पास 
ऊबने का समय ही कहाँ है!!
मैं तो निरन्तर 
तुम्हारे लिए छावं,
भोजन, लकड़ी 
और साँसें जुटाने में लगा हुआ हूँ।

- शालिनी पाण्डेय 

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