नहीं पता
जिंदगी का काफिला
कितनी दूरी तय करेगा,
नहीं मालूम
ये किस मुकाम पर रुकेगा......
ना जाने क्या-क्या
मंजर आएंगे राहों में,
ना जाने कितने अतीत
फिर लौट आएंगे जीवन में.....
पर ये निश्चित है
लोग बिछड़ते-जुड़ते जाएंगे
वैसे ही जैसे बिछड़ते है
हर मुलाक़ात के बाद
तुम और हम...
- शालिनी पाण्डेय
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