Sunday 18 July 2021

गुजरते रास्ते

एक गहरी खामोशी मौजूद रहती है
जंगल में दूर तक फैली
चीड़ की कतारों के बीच 

खामोशी जिसमें कई
बार डूबते- तैरते हुए सी
मैं पहुँच आती हूं
अपने भीतर फैली
प्रश्नों की खाई में

तब मुझे ननजर आ जाती है
अपनी सूक्ष्मता
भीतर का खोखलापन
और स्वार्थपरकता

चट्टानों और पत्थरों से घिरे
इन कतारों से गुजरते हुए
मैं महसूस करती हूं
सृष्टि की विशालता
इसकी सृजनात्मकता,
करुणा और प्रेम को

मैं रख देती हूं
इसके सामने निचोड़ कर
अपनी न्यूनता को
और सोख लेना चाहती हूं
इस सृजनात्मकता
और प्रेम का कुछ अंश
अपने भीतर।

- शालिनी पाण्डेय 

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