एक गहरी खामोशी मौजूद रहती है
जंगल में दूर तक फैलीचीड़ की कतारों के बीच
खामोशी जिसमें कई
बार डूबते- तैरते हुए सी
मैं पहुँच आती हूं
अपने भीतर फैली
प्रश्नों की खाई में
तब मुझे ननजर आ जाती है
अपनी सूक्ष्मता
भीतर का खोखलापन
और स्वार्थपरकता
चट्टानों और पत्थरों से घिरे
इन कतारों से गुजरते हुए
मैं महसूस करती हूं
सृष्टि की विशालता
इसकी सृजनात्मकता,
करुणा और प्रेम को
मैं रख देती हूं
इसके सामने निचोड़ कर
अपनी न्यूनता को
और सोख लेना चाहती हूं
इस सृजनात्मकता
और प्रेम का कुछ अंश
अपने भीतर।
- शालिनी पाण्डेय
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