अब जब मैं लौट आयी हूं पहाड़ पर,
तो
सारे नजारों को
मैं अपने भीतर समेट लेना चाहती हूं।
भीड़ से अलग
पहाड़ के जीवन में
एक अलग सुकून है,
बीते वक़्त की ग्लानि,
भविष्य की चिंताओं से परे,
हर लम्हें को बस जीते जाने का मन करता है।
यहां के
पेड़, पहाड़, रास्तों की तरह
हर अजनबी की आंख में भी
थोड़ा अपनापन है
शाम की ठंडी बयार जैसे
यहाँ जीवन धीमा सा संगीत लिए
बह रहा है....
-शालिनी पाण्डेय
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