Saturday 3 July 2021

जब मैं लौट आयी हूं

अब जब मैं लौट आयी हूं पहाड़ पर,
तो
सारे नजारों को
मैं अपने भीतर समेट लेना चाहती हूं।

भीड़ से अलग
पहाड़ के जीवन में
एक अलग सुकून है,

बीते वक़्त की ग्लानि,
भविष्य की चिंताओं से परे,
हर लम्हें को बस जीते जाने का मन करता है।

यहां के
पेड़, पहाड़, रास्तों की तरह
हर अजनबी की आंख में भी 
थोड़ा अपनापन है

शाम की ठंडी बयार जैसे 
यहाँ जीवन धीमा सा संगीत लिए 
बह रहा है....
 
-शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...