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Showing posts from May, 2017

जिंदगी तेरा शुक्रिया

मैं कुछ किताबें मेरी क़लम ग़ज़लें और ढेर सारा समय जो अब हैं सिर्फ मेरा ये मुझे जन्नत से कम नही लगता वाह! जिंदगी तेरा शुक्रिया। देख पा रही हूं अब तुझे बारीकी से इतने करीब से कि पह...

प्यारा दर्द

ये दर्द इतना प्यारा है कि घंटों डूबे रहने को जी चाहता है अब तो चाहत है कि ये सारा मेरे भीतर ही समा जाए और इस कदर ठहर जाए जैसे ठहर जाता है आदमी इश्क़ में -शालिनी पाण्डेय

भावनाओं की चादर

बेफिक्र हो तुम आज़ाद हो तुम भावनाओं से परे हो तुम और मैं एकदम विपरीत ना बेफिक्र हो पाती हूँ ना आज़ाद ही जी पाती हूँ भावनाओं की चादर मैंने इस कदर ओढ़ ली है कि कुछ और अनुभव ही नही कर ...

एक पहेली

कितना मुश्किल है यथार्थ में जीना कितना मुश्किल है सच को स्वीकारना कितना मुश्किल है स्वयं को समझना ये सब है एक पहेली सा जैसे ही लगता है अब सब सुलझेगा और उलझ जाता है मैं भी उल...

मुझे उड़ जाने दो

ऐ मेरे पावों में पड़ी बेड़ियों टूटो अब ये जकड़न बर्दास्त नहीं होती क्यों मुझे बाँधने की कोशिश करते हो क्या पाओगे बंदीे मृत मानव से क्यों मुझे संजोए रखना चाहते हो मैं कोई निष्...

भावुकता

भावनाओं की राह पर चली भावनाओं से भरी थी अब भावनाओं से ऊब चुकी है कितनी पाक थे वो भाव जिनसे उसने गले लगाया उस अजनबी को भावुकता भी अजीब बचपना है बिना जोड़ भाग किये तुम कांच का एक ...

रिश्ते

रिश्ते जिन्हें बनाने में बरसों बीत जाते जब टूटते हैं तो ऐसे जैसे नवागंतुक पंछी को बाज ले गया रिश्तों के तार जिन्हें जोड़ते जोड़ते एक उम्र निकल जाती है पर टुकड़े होने के लिए पल ...

सफर

तय कर रही हूं मैं सफर हवा के साथ बहने का सफर झोकों के साथ उड़ जाने का सफर आंधी में गुम हो जाने का सफर फुहारों में भीगने का सफर तेज धारों सेे छुपने का सफर मुसलदार बरसात में आशिया...

कौन हो तुम?

कौन हो तुम क्या लगते हो मेरे क्या रिश्ता है हमारा नही जान सकी हूं अब तक पर जानना चाहती हूं क्यों तुम दिल के इतने करीब हो क्यों तुम हमेशा साथ रहते हो क्यों तुम्हारा साथ छोड़ने ...

हिस्सेदार

धीरे धीरे वो हिस्सेदार बना पहले बातों का और फिर यादों का और अब मेरा यूं तो वो अलग है मीलों दूर है पर उसका अहसास साथ है वो खामोश है कुछ जताता नहीं है लेकिन इससे रिश्ता और गहरा ज...

कैनवास वाले सपने की याद

आज भी तेरा जिक्र हुआ तो चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई पलक झपकते ही ख्याल आया कि तुझे एक कैनवास पर उतार दूँ और घर की हर दीवार पर सजा दूँ एकटक जी भर कर देखती रहूँ इस क़दर निहारती रहूँ कि खो जाऊं तुझमें कही भूल जाऊं कि मैं क्या हूं समा जाऊं तुझमे इस कदर कि ये फासले शून्य हो जाएं सीने से चिपट जाऊं ऐसे कि धड़कनों से मिल पाऊं इतने करीब आ जाऊं कि महसूस हो साँसों की गर्मी लग जाऊं इस तरह गले कि फिर कभी ना बिछड़ पाऊं आंखे खुलते ही ख्याल टूटा मैं स्तब्ध ताक रही थी लेकिन घर की दीवार बिल्कुल सूनी थी ये देख मैं थोड़ा घबरायी पर फिर कैनवास वाले ख्वाब की याद चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ले आयी। -शालिनी पाण्डेय

संगिनी

वो लड़की, समझदार और आत्मनिर्भर क्यों भटक रही है? दर-दर पर जाकर, किसे आवाज दे रही है? समझ नही पा रही, उसकी तलाश को। जी चाह रहा कि पूछ लूं- आखिर चाहती क्या हो? क्यूँ मुझे यूं अशांत कर र...

सूरज दादा बोलो

सूरज की पहली किरण, स्पर्श करती धरा का सुप्त अवस्था निर्जीव से सजीव हो उठती पंखुड़ियों में गुम जल की बूंद मोती जैसे चमचमाती अंधियारी राहें प्रकाशित हो जाती नव आगंतुक पक्षी ...