Saturday 27 May 2017

एक पहेली

कितना मुश्किल है
यथार्थ में जीना
कितना मुश्किल है
सच को स्वीकारना
कितना मुश्किल है
स्वयं को समझना

ये सब है
एक पहेली सा
जैसे ही लगता है
अब सब सुलझेगा
और उलझ जाता है

मैं भी उलझ सी गई
ऐसे ही पहेली के भीतर
ना पार जा पाई
ना वापस आ पाई

समझ नही आता था
किस राह जाना है
जैसे ही कोई राह चुनों
कुछ मील चलो
छा जाता है वही
गहन अंधेरा

अनेकों प्रयत्न किए
बहुत तरीक़े आजमाए
पूरी जान लगा दी
फिर क्या
और उलझती गयी
ऐसे ही उलझते उलझते
समय समाप्त हो चला

जब आखिर सांस ली
तो समझ आया
ये पहेली ही थी जीवन
इससे पार पाने का मतलब
जीवन से पार पा जाना।

-शालिनी पाण्डेय

No comments:

Post a Comment

हिमालय की अछूती खूबसूरती: पंचाचूली बेस कैंप ट्रैक

राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...