कितना मुश्किल है
यथार्थ में जीना
कितना मुश्किल है
सच को स्वीकारना
कितना मुश्किल है
स्वयं को समझना
ये सब है
एक पहेली सा
जैसे ही लगता है
अब सब सुलझेगा
और उलझ जाता है
मैं भी उलझ सी गई
ऐसे ही पहेली के भीतर
ना पार जा पाई
ना वापस आ पाई
समझ नही आता था
किस राह जाना है
जैसे ही कोई राह चुनों
कुछ मील चलो
छा जाता है वही
गहन अंधेरा
अनेकों प्रयत्न किए
बहुत तरीक़े आजमाए
पूरी जान लगा दी
फिर क्या
और उलझती गयी
ऐसे ही उलझते उलझते
समय समाप्त हो चला
जब आखिर सांस ली
तो समझ आया
ये पहेली ही थी जीवन
इससे पार पाने का मतलब
जीवन से पार पा जाना।
-शालिनी पाण्डेय
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