ऐ मेरे पावों में पड़ी बेड़ियों टूटो
अब ये जकड़न बर्दास्त नहीं होती
क्यों मुझे बाँधने की कोशिश करते हो
क्या पाओगे बंदीे मृत मानव से
क्यों मुझे संजोए रखना चाहते हो
मैं कोई निष्क्रिय मोती तो नही
मुझे टूटने दो
बिखरकर भले ही मिट्टी में मिल जाने दो
पर इस तरह शर्तों में जीने को ना कहो
-शालिनी पाण्डेय
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