Tuesday 30 May 2017

जिंदगी तेरा शुक्रिया

मैं
कुछ किताबें
मेरी क़लम
ग़ज़लें
और ढेर सारा समय
जो अब हैं सिर्फ मेरा
ये मुझे जन्नत से कम नही लगता
वाह! जिंदगी तेरा शुक्रिया।

देख पा रही हूं अब तुझे बारीकी से
इतने करीब से कि पहले कभी ना देखा
जी पा रही हूं हर आते पल को
सुन पा रही हूं अपनी धड़कनों को
महसूस कर पा रही हूं अपने अस्तित्व को
समझ पा रही हूं अपनी भावों को
वाह! री जिंदगी तेरा शुक्रिया।

कभी ना खत्म होने वाली तलाश
अब खत्म हो गई
आपा धापी में खो गई लाश अब
फिर जी उठी
चेहरे पर पड़ी नक़ाब की परतें
अब गिर सी रही
अब मेरे आशियानें में रह गया
सिर्फ सच और
बचपन वाली बेफ्रिकिया
वाह! जिंदगी तेरा शुक्रिया।

- शालिनी पाण्डेय

1 comment:

  1. भावों को शब्दों मे पिरौना जानती हे आप खुब ।

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