Wednesday 24 May 2017

हिस्सेदार

धीरे धीरे वो हिस्सेदार बना
पहले बातों का और फिर यादों का
और अब मेरा

यूं तो वो अलग है
मीलों दूर है
पर उसका अहसास साथ है

वो खामोश है
कुछ जताता नहीं है
लेकिन इससे रिश्ता और गहरा जाता है

वो विचित्र है
अस्थिर भी है
पर इन अदाओं पर भी हमें नाज़ है

पहले रहता था वो ख्यालों में कुछ पल
जब बात हो
या फिर मुलाकात हो

लेकिन अब क्या मेरे ख्याल और क्या वो
लगता है अब दोनों एक हो गए हैं
इसीलिए अब एकाकी होने में भी आनंद है

अचानक जब पढ़ते पढ़ते गहरी सांस लो
या कभी अपने में गुम बैठे रहो तो
ना जानें कहा से आ जाता है

मेरा सिर्फ अपना होने वाला समय और
मेरे इशारों पर चलने वाली क़लम
बिना इजाज़त उसकी तरफ मुड़ जाती है

वो हिस्सेदार बना इसीलिए मिट गया मेरा अहम
अब मैं घुल गई हूं  उसके ही रंग में
और जन्म ले रहा है प्यार

-शालिनी पाण्डेय

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