धीरे धीरे वो हिस्सेदार बना
पहले बातों का और फिर यादों का
और अब मेरा
यूं तो वो अलग है
मीलों दूर है
पर उसका अहसास साथ है
वो खामोश है
कुछ जताता नहीं है
लेकिन इससे रिश्ता और गहरा जाता है
वो विचित्र है
अस्थिर भी है
पर इन अदाओं पर भी हमें नाज़ है
पहले रहता था वो ख्यालों में कुछ पल
जब बात हो
या फिर मुलाकात हो
लेकिन अब क्या मेरे ख्याल और क्या वो
लगता है अब दोनों एक हो गए हैं
इसीलिए अब एकाकी होने में भी आनंद है
अचानक जब पढ़ते पढ़ते गहरी सांस लो
या कभी अपने में गुम बैठे रहो तो
ना जानें कहा से आ जाता है
मेरा सिर्फ अपना होने वाला समय और
मेरे इशारों पर चलने वाली क़लम
बिना इजाज़त उसकी तरफ मुड़ जाती है
वो हिस्सेदार बना इसीलिए मिट गया मेरा अहम
अब मैं घुल गई हूं उसके ही रंग में
और जन्म ले रहा है प्यार
-शालिनी पाण्डेय
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