वो लड़की,
समझदार और आत्मनिर्भर
क्यों भटक रही है?
दर-दर पर जाकर,
किसे आवाज दे रही है?
समझ नही पा रही,
उसकी तलाश को।
जी चाह रहा कि पूछ लूं-
आखिर चाहती क्या हो?
क्यूँ मुझे यूं अशांत कर रही हो?
मुझे है अभी लंबा सफर तय करना,
पाना है पार बहुत से पड़ावों को,
अगर तुम साथ ना दोगी,
तो कौन देगा?
तुम ही हो जो जानती हो मुझे जन्म से,
पहचानती हो मेरे सपनों को,
तुम ही अगर इस संघर्ष में
मेरे साथ ना रहोगी
तो कौन रहेगा?
ए लड़की
और ना इस मन को भटका
तू और मैं हैं जीवन भर की संगिनी
मुझे तू यूं भृमित करेगी तो,
कैसे खिल पाऊंगी मैं फूल बनकर?
कैसे चकमकुंगी सितारा बनकर?
हो सकता है,
तुम अलग राह जाना चाहोगी।
किंतु संगिनी ठहर जाओ,
इस राह पर मुझे अभी तुम्हारी जरूरत है।
-शालिनी पाण्डेय
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