Monday 29 May 2017

भावनाओं की चादर

बेफिक्र हो तुम
आज़ाद हो तुम
भावनाओं से परे हो तुम
और मैं एकदम विपरीत
ना बेफिक्र हो पाती हूँ
ना आज़ाद ही जी पाती हूँ
भावनाओं की चादर मैंने इस कदर ओढ़ ली है
कि कुछ और अनुभव ही नही कर पाती
इससे मैं यूं लिपटी हुई हूँ मानो
एक बिछड़ी प्रेमिका लिपटी है अपने प्रेमी से
जो अब नही चाहती कि वो
आंखों से एक पल के लिए भी ओझल हो
इस बिछड़न की कल्पना मात्र ही
मेरी रूह को कंपा देती है
नही नही
मुझसे ये भावनाओं की चादर नही छूटेगी
इसका त्याग करने से पहले
मैं पसंद करूँगी अपनी रूह को त्यागना

-शालिनी पाण्डेय

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