रिश्ते
जिन्हें बनाने में बरसों बीत जाते
जब टूटते हैं तो ऐसे
जैसे नवागंतुक पंछी को बाज ले गया
रिश्तों के तार
जिन्हें जोड़ते जोड़ते एक उम्र निकल जाती है
पर टुकड़े होने के लिए पल भी नही चाहिए
गांधरी की आँखों की पट्टी याद है ना
वैसे ही एक पट्टी अंधकार की
मानो तुम्हारे मन पर भी लग जाती है
अच्छाई अब नजर ही नही आती
अब याद रह जाते है
तीर समान दिल को चीर देने वाले शब्द
जो गूँजते रहते है चारों ओर
उनका नाद तुम्हे पागल सा कर देता है
तुम ऐसे मुँह के बल गिरते हो
जैसे कि अब उठने की हिम्मत ही ना हो
इतने टूट जाते हो कि
खुद को ही पहचानना मुश्किल हो जाता है
ऐसा लगता है
क्यों जी रहे हो तुम
क्या पाया रिश्तों की माला पिरोकर
जो पिरोने वाले को दिख ही नही पायी
अब चुनना होगा किसी एक को
रिश्ते और मैं में से
दो रास्ते है मेरे आगे
या तो डूब जाऊँ
या सबक लेकर जी जाऊं
-शालिनी पाण्डेय
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