आज भी तेरा जिक्र हुआ तो
चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई
पलक झपकते ही ख्याल आया कि
तुझे एक कैनवास पर उतार दूँ
और घर की हर दीवार पर सजा दूँ
एकटक जी भर कर देखती रहूँ
इस क़दर निहारती रहूँ कि
खो जाऊं तुझमें कही
भूल जाऊं कि मैं क्या हूं
समा जाऊं तुझमे इस कदर
कि ये फासले शून्य हो जाएं
सीने से चिपट जाऊं ऐसे
कि धड़कनों से मिल पाऊं
इतने करीब आ जाऊं
कि महसूस हो साँसों की गर्मी
लग जाऊं इस तरह गले
कि फिर कभी ना बिछड़ पाऊं
आंखे खुलते ही ख्याल टूटा
मैं स्तब्ध ताक रही थी लेकिन
घर की दीवार बिल्कुल सूनी थी
ये देख मैं थोड़ा घबरायी
पर फिर कैनवास वाले ख्वाब की याद
चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ले आयी।
-शालिनी पाण्डेय
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