आज देखो
कई दिनों बाद
घिर आये है मेघा
घुमड़ रहे है
गरज रहे है
बरस रहे है मेघा
इन्हीं मेघों के जैसे
घुमड़ता है मेरा प्यार
तुम घर से निकलो
तो ये भी जरा बरस ले।
-शालिनी पाण्डेय
राहुल सांकृत्यायन मानते थे कि घुमक्कड़ी मानव-मन की मुक्ति का साधन होने के साथ-साथ अपने क्षितिज विस्तार का भी साधन है। उन्होंने कहा भी था कि-...
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