हॉस्पिटल की दीवारें
आदी हो जाती है
मरीजों के आह भरने की,
चीखें सुनकर भी
इनकी आँख नहीं भर आती,
इनके लिए
मरीज और उनका दर्द
रोज की बात है,
ये बस देखती रहती है
हर गुज़रने वाले मरीज को
और कुछ नहीं बोलती।
लेकिन ध्यान से देखो
इनकी सूरत को
तो
पता चलता है
कि सबके दर्द को
सोख लेने की वजह से
इनका लहू और मन
दोनों काले पढ़ गए हैं
और अब ये अपने लिए भी
कराह पाने में खुद को
असमर्थ पाती है।
- शालिनी पाण्डेय
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