कभी है मोम सी कोमलता
तो कभी शिला सी कठोरता
एक पल शांत निश्चल बहती धार
फिर भादों सी उफनती नदी
होती हूँ अग्नि सी ज्वलंत
फिर पूस सी संवेदनशून्य
हो जाती हूँ रंगीन इंद्रधनुष
तो कभी नीरस घाम सी
रंग जाती हूँ कभी सुर्ख लाल
फिर हूँ श्वेत कमल सी
बनती हूँ क़भी ग़ालिब की शायरी
फिर कागज के कोरे पन्नों सी
कभी बरस जाती हूँ
बूंद बूंद सी भर भी जाती हूँ
कभी गगन सी विस्तारित होती
फिर छुईमुई सी सकुचाती
नित्य होता है जन्म और मरन
प्रति क्षण कुछ नया उपजता भीतर
हर पल होता कुछ नष्ट
स्थिर नहीं रहता कभी कुछ
चूंकि स्थिरता है मृत्यु में
जीवन तो सदा चलायमान है।
-शालिनी पाण्डेय
परिवतनशील जीवन .....😀
ReplyDelete