Thursday 1 June 2017

परिवर्तनशीलता

कभी है मोम सी कोमलता
तो कभी शिला सी कठोरता
एक पल शांत निश्चल बहती धार
फिर भादों सी उफनती नदी
होती हूँ अग्नि सी ज्वलंत
फिर पूस सी संवेदनशून्य

हो जाती हूँ रंगीन इंद्रधनुष
तो कभी नीरस घाम सी
रंग जाती हूँ कभी सुर्ख लाल
फिर हूँ श्वेत कमल सी
बनती हूँ क़भी ग़ालिब की शायरी
फिर कागज के कोरे पन्नों सी

कभी बरस जाती हूँ
बूंद बूंद सी भर भी जाती हूँ
कभी गगन सी विस्तारित होती
फिर छुईमुई सी सकुचाती

नित्य होता है जन्म और मरन
प्रति क्षण कुछ नया उपजता भीतर
हर पल होता कुछ नष्ट
स्थिर नहीं रहता कभी कुछ
चूंकि स्थिरता है मृत्यु में
जीवन तो सदा चलायमान है।

-शालिनी पाण्डेय

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