तू है यादों की एक पोटली
जिसे सहेजे हुए हूँ मैं
बरगद सी विशाल तेरी बाहें
जिनमें ख्वाबों के झूले झूल रही हूँ मैं
करती हूं यकी वो पल कभी तो आयेगा
जो तुझे मेरे होने का अहसास करायेगा
शायद रोये पत्थर हो चुकी आंखे तेरी
फूटे तन से स्नेह की कोपलें भी
तेरे भीतर दफ़्न स्निग्दता का तूफान
कभी तो मुझे झकझोरना चाहेगा
अभी ऊफनती नदी है तो क्या
अंत में तो मुझमें मिलना चाहेगा
झाँककर मेरे भीतर शायद
देख पाए तू अपने वजूद के ताने
क्योंकि लफ्ज़ तो अब बस शोर करते है
नहीं बया कर सकते ये तेरे माने
-शालिनी पाण्डेय
Comments
Post a Comment