कैसे ना याद करूं उन गलियों को
जिनपर एक रोज तुम मिले
कैसे छोड़ दूं उन ख्वाबों को
जिनमें शुरू हुए वो हसीन सिलसिले
कैसे भुला दूँ वो बातें वो रातें
जो तुम्हारे सिरहाने बैठकर बिताई
कैसे विदा करूँ वो अहसास
जब मैं एक बच्चे सी तुमसे चिपट गई
कैसे मिटा दूँ तेरा वो चेहरा
जो मेरे आईने पर उतर आया है
कैसे जुदा होऊं तेरी रूह से
जो पानी में मिश्री सी घुल गई है
मैं अहसानमंद हूं इन यादों की
जो फ़ासलों में संगीत सी मेरे साथ रही
तुम्हें संगीत की परख तो है पर
मैं तुम्हें इस गीत को सुनने को नही कहती
क्योंकि इन यादों में बेशक़ तुम हो
लेकिन ये यादें सिर्फ मेरी है अकेले की ।
-शालिनी पाण्डेय
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