Sunday 4 June 2017

ललचाई निगाहें

आज मुलाकात हुई एक चिड़िया से
वो चिड़िया
जिसके पंख कतर कर रख दिये है
किसी मखमली से रूमाल में लपेटकर
और लटका दिए गए है किसी इमारत से
सभ्यता संस्कृति जैसे लुभावने नाम देकर
इसके साथ ही
कर दिया है विस्थापित पंखों की याद को भी
रिश्तों का उलाहना देकर

और इसकी लुभावट का जादू तो देखो
आज भी वो चिड़िया
गुमराह है इसकी चकाचोंध में
जी रही है एकतरफा जीवन
अब शायद वो भूल चुकी है
पंख फैलाकर हवा के रुख से उलट उड़ना
खो चुकी है क्षमता
जो प्रत्यक्ष नही है उससे परे देखने की
बस बन सजावट देख रही
सबको ललचाई निगाहों से।

-शालिनी पाण्डेय

1 comment:

  1. दुनिया सजावटी बनती जा रही हे ...फ़ूलॊ से लेकर पक्षी sbसब पे रंगीन रंग चढ़ गये है .....

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