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Showing posts from May, 2019

पंख

यथार्थ मानस को डराता है और कल्पना पंख उगाती है डर से पार पाने के लिए। ~ शालिनी पाण्डेय

लेखन कर्म

लेखन कर्म के लिए शब्द बहुत जरूरी हैं लेकिन जो सबसे जरूरी है वो है संवेदना जो लेखक को शब्द चुनने और बुनने की कला से परिचित कराती है। - शालिनी पाण्डेय

त्वचा का रंग

एक लड़की,  जो जन्मी है  त्वचा का गहरा रंग लिए, जिसने, जीवनपर्यन्त तराशा है , अपने अंतर्मन को.... आज भी,  सुंदरता के, तंग पैमाने की वजह से, गोरी देह के साथ जन्मी लड़की की तुलना में, सुंदर नहीं कही जाती..... - शालिनी पाण्डेय

हमारे बीच

जब तेरे और मेरे बीच में मोहब्बत है तो फ़िर ये शर्म और पर्दा हमारे बीच कैसे? - शालिनी पाण्डेय

जब मैं खुद को अलग पाती हूँ

कई बार जब मैं खुद को अलग पाती हूँ अन्य लड़कियों से भौतिक नहीं वैचारिक, बौद्धिक और कल्पना के स्तर पर तो मुझे ये  अहसास कराया जाता है कि अलग राह चुनना यूँ तो सही है, ... पर............ सुरक्ष...

मैं नहीं चाहती

मैं नहीं चाहती, बहुत बड़ा संसार अपने लिए, मैं चाहती हूं, बहुत सारी संवेदनाएं अपने लिए, और हो सके तो एक हमराही, इन्हें सांझा करने के लिए। - शालिनी पाण्डेय

हमारे आस पास

यहाँ हमारे आस पास बहुत कम लोग है जो कविता की भाषा समझते है और जो कविता के मर्म को जान पाते है, क्योंकि ज़्यादातर तो स्थूल आवश्यकता की पूर्ति में अपनी जान उलझाकर जो जानने योग्...

लिखना

लिखना एक प्रयास है अंतर्मन की बेचैनियों को शक़्ल देकर दूसरों से रूबरू कराने का लिखना एक लत है सिगरेट जैसे जिसके धुएं से तुम मदहोश हो ना चाहते हुए भी लिखना एक रिश्ता है मोहब...

अल्फ़ाज़

कुछ अल्फ़ाज़ पुल जैसे होते हैं जो दो मूक संवेदनाओं को जोड़ने का काम करते हैं ।। - शालिनी पाण्डेय

तुमको खोना

हाँ हाँ मुझे डर नहीं है अब तुमको खोने का, खोया उसे जाता है जो हमसे पृथक हो, पर तुम तो मेरे भीतर की चेतन साँसों जैसे हो, तुम्हें तो उसी दिन खोना होगा जब मैं खुद को ही खो दूंगी। -शाल...

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सावन जो तुम्हारे इंतज़ार में बिना बरसे ही लौट गया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सवेरा जोे दीदार की चाह में कभी हो नहीं पाया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे...

स्त्री और पुरुष

मानो एक ही रेखा के दो छोर से है स्त्री और पुरुष जो कि अपने अड़ियल पन में विपरीत दिशाएँ अपनाकर   फासले की खाईयों को जन्म देते है और अपने लचीले स्वभाव में अनुकूल दिशाएँ अपनाकर...

आंखें ख़्वाब पालती है

पलकों से खुद को ढक कर, आंखें ख़्वाब पालती हैं, पलकें उठाकर, आंखें, यादों के धागे बुनती हैं... और बीते लम्हों के टुकडें लिए,यादें  जीवन भर साथ चलती हैं।। - शालिनी पाण्डेय

धुंधला सा चाँद

धुंधला सा चांद आया है आज मेरी खिड़की पर, इसका चेहरा ठीक वैसा ही दिखता है जैसे तुम्हारा चेहरा था उस रोज जब तुम पहली बार मिलने आये थे बीमारी का पीलापन लिए। - शालिनी पाण्डेय

तुम जब जागोगे

तुम जब जागोगे तो शायद मैं तुम्हारे शहर से दूर निकल आयी होंगी तुम अधखुली आंखों के ख़्वाब में मुझे देखना और मैं यादों में रखी तुम्हारी सूरत निहार लूंगी। - शालिनी पाण्डेय

तुम्हें क्या कहूं

तुम्हें क्या कहूँ ? दोस्त, हमराही या  हमसफ़र... सोचती हूं, तुम्हें कुछ ना कहूँ, सिर्फ कहने से ही तो होना नहीं होता। --शालिनी पाण्डेय

नारी

हर वाक़ये पर कैसे तुम मुझे अलग अलग तराजुओं में तोल देते हो आज मैं तुमसे विनती करती हूं बाहर की सूचनाओं को आधार बना मुझे तोलना बंद करो जब तुमने कभी मेरे भीतर की चेतना की ओर झा...

कुछ यादें

कुछ यादें कोयले जैसी होती हैं जो वक़्त के दबाव को सहकर हीरे में तब्दील हो जाती हैं। - शालिनी पाण्डेय

तुम्हारी याद में खोए-खोए

तुम्हारी याद में खोए-खोए मैं रच देती हूं एक नया संसार । इस संसार में पहाड़ की तलहटी पर नदी किनारे बैठ कर हम देखते है सूरज के रंगों को पानी में घुलते हुए और बनाते है ढेर सारी तस...

आत्मा देना सीख गई हो शब्दों को

अभी कल ही की बात है, जब मैंने एक कविता लिख कर अपने एक दोस्त को भेजी तो उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा " आत्मा देना सीख गई हो शब्दों को " । मुझे नही पता कि वो कौन सी शक्ति है जो शब्दों ...

मैंने चखना चाहा था

उस रोज जब तेरी जलती सिगरेट कोे अपने होठों पे रखकर मैंने पहला कश लिया मैंने चखना चाहा था तेरे भीतर के दर्द को अपने होठों से। - शालिनी पाण्डेय

एक रोज़

जब मैं टूटकर मिल जाऊंगी नदी में और भाप बन समा जाऊंगी बादल में तो फ़िर एक रोज मैं  बरस जाऊंगी तुम्हारी  छत पर बारिश की बूंदें बन और भिगो दूंगी तुम्हें खुद में। - शालिनी पाण्डे...

अगर तुम साथ होगे

अगर तुम साथ होगे तो लड़ लूंगी मैं हर उस बुराई से जो लड़की के रूप में जन्म लेते ही  मुझसे जोड़ दी गयी है अगर तुम साथ होगे तो तोड़ दूंगी हर उस बेड़ी को जो मुझे रिवाज़ों परम्पराओं की उल...

गहरी वेदना

तुम्हारी आंखें रह रह कर प्यार का इज़हार करती है सच कहूं तो इन आँखों में केवल प्यार नहीं है प्यार मानो कुछ देर तक चमकता है तुम्हारी आँखों में और फिर तुम उसको लबों तक लाये बिना...

संघर्ष

संघर्ष खुद को तेरे बारे में समझाने का अब ख़त्म हो गया है या यूँ कहूं कि पूरा हो गया है क्यूंकि अब मैंने तेरे भीतर झाँक कर जी लिया है उन सभी सूरतों को जो तू लफ़्ज़ों से बयां नहीं क...

वो आया

वो आया उस रोज मेरे दरवाज़े तक, वो ठहरा उस रोज मेरे आशियाँ पर, वो अलग बैठा रहा जब तक घुल ना गया मेरी रूह से फिर उसके लब हिलते रहे खामोश होने तक । - शालिनी पाण्डेय

काश !

काश !! मैं नदी होती तो बहा देती तुम्हारे सारे दुखों को अपने वेग से और दे जाती तुम्हें मीठा मधुर संगीत जीने के लिए। - शालिनी पाण्डेय

यादों की ओर

निकल पड़ी हूं आज मैं अपने यादों के शहर की ओर देखो मैंने बढ़ा दिया है एक कदम तुम्हारी ओर आशा है अब तो  तुम भी चलोगे कुछ कदम मेरी ओर । - शालिनी पाण्डेय

अपने हिस्से का दर्द

अपने हिस्से का दर्द सबको ख़ुद ही सहना होता हैं क्यूँकि जश्न तो भीड़ और शोर शराबें में मनाया जा सकता है, लेकिन ग़म तो तन्हाई और अकेले में ही जिया जाता है। - शालिनी पाण्डेय

फ़ासला

अकेले में जब लफ्ज़ नहीं होते तू बहुत करीब होता है और वहीं लफ़्ज़ों के आ जाने से तेरे और मेरे बीच कुछ फ़ासला सा बन जाता है। - शालिनी पाण्डेय

याद के बुलबुले

वीराने में तेरी याद के बुलबुले कुछ यूं उठते है , जैसे खिल रहे हो नागफ़नी के फूल रेगिस्तान के उजाड़ में। - शालिनी पाण्डेय