एक लड़की, जो जन्मी है त्वचा का गहरा रंग लिए, जिसने, जीवनपर्यन्त तराशा है , अपने अंतर्मन को.... आज भी, सुंदरता के, तंग पैमाने की वजह से, गोरी देह के साथ जन्मी लड़की की तुलना में, सुंदर नहीं कही जाती..... - शालिनी पाण्डेय
कई बार जब मैं खुद को अलग पाती हूँ अन्य लड़कियों से भौतिक नहीं वैचारिक, बौद्धिक और कल्पना के स्तर पर तो मुझे ये अहसास कराया जाता है कि अलग राह चुनना यूँ तो सही है, ... पर............ सुरक्ष...
मैं नहीं चाहती, बहुत बड़ा संसार अपने लिए, मैं चाहती हूं, बहुत सारी संवेदनाएं अपने लिए, और हो सके तो एक हमराही, इन्हें सांझा करने के लिए। - शालिनी पाण्डेय
यहाँ हमारे आस पास बहुत कम लोग है जो कविता की भाषा समझते है और जो कविता के मर्म को जान पाते है, क्योंकि ज़्यादातर तो स्थूल आवश्यकता की पूर्ति में अपनी जान उलझाकर जो जानने योग्...
लिखना एक प्रयास है अंतर्मन की बेचैनियों को शक़्ल देकर दूसरों से रूबरू कराने का लिखना एक लत है सिगरेट जैसे जिसके धुएं से तुम मदहोश हो ना चाहते हुए भी लिखना एक रिश्ता है मोहब...
हाँ हाँ मुझे डर नहीं है अब तुमको खोने का, खोया उसे जाता है जो हमसे पृथक हो, पर तुम तो मेरे भीतर की चेतन साँसों जैसे हो, तुम्हें तो उसी दिन खोना होगा जब मैं खुद को ही खो दूंगी। -शाल...
क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सावन जो तुम्हारे इंतज़ार में बिना बरसे ही लौट गया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सवेरा जोे दीदार की चाह में कभी हो नहीं पाया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे...
मानो एक ही रेखा के दो छोर से है स्त्री और पुरुष जो कि अपने अड़ियल पन में विपरीत दिशाएँ अपनाकर फासले की खाईयों को जन्म देते है और अपने लचीले स्वभाव में अनुकूल दिशाएँ अपनाकर...
पलकों से खुद को ढक कर, आंखें ख़्वाब पालती हैं, पलकें उठाकर, आंखें, यादों के धागे बुनती हैं... और बीते लम्हों के टुकडें लिए,यादें जीवन भर साथ चलती हैं।। - शालिनी पाण्डेय
धुंधला सा चांद आया है आज मेरी खिड़की पर, इसका चेहरा ठीक वैसा ही दिखता है जैसे तुम्हारा चेहरा था उस रोज जब तुम पहली बार मिलने आये थे बीमारी का पीलापन लिए। - शालिनी पाण्डेय
तुम जब जागोगे तो शायद मैं तुम्हारे शहर से दूर निकल आयी होंगी तुम अधखुली आंखों के ख़्वाब में मुझे देखना और मैं यादों में रखी तुम्हारी सूरत निहार लूंगी। - शालिनी पाण्डेय
हर वाक़ये पर कैसे तुम मुझे अलग अलग तराजुओं में तोल देते हो आज मैं तुमसे विनती करती हूं बाहर की सूचनाओं को आधार बना मुझे तोलना बंद करो जब तुमने कभी मेरे भीतर की चेतना की ओर झा...
तुम्हारी याद में खोए-खोए मैं रच देती हूं एक नया संसार । इस संसार में पहाड़ की तलहटी पर नदी किनारे बैठ कर हम देखते है सूरज के रंगों को पानी में घुलते हुए और बनाते है ढेर सारी तस...
अभी कल ही की बात है, जब मैंने एक कविता लिख कर अपने एक दोस्त को भेजी तो उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा " आत्मा देना सीख गई हो शब्दों को " । मुझे नही पता कि वो कौन सी शक्ति है जो शब्दों ...
जब मैं टूटकर मिल जाऊंगी नदी में और भाप बन समा जाऊंगी बादल में तो फ़िर एक रोज मैं बरस जाऊंगी तुम्हारी छत पर बारिश की बूंदें बन और भिगो दूंगी तुम्हें खुद में। - शालिनी पाण्डे...
अगर तुम साथ होगे तो लड़ लूंगी मैं हर उस बुराई से जो लड़की के रूप में जन्म लेते ही मुझसे जोड़ दी गयी है अगर तुम साथ होगे तो तोड़ दूंगी हर उस बेड़ी को जो मुझे रिवाज़ों परम्पराओं की उल...
तुम्हारी आंखें रह रह कर प्यार का इज़हार करती है सच कहूं तो इन आँखों में केवल प्यार नहीं है प्यार मानो कुछ देर तक चमकता है तुम्हारी आँखों में और फिर तुम उसको लबों तक लाये बिना...
संघर्ष खुद को तेरे बारे में समझाने का अब ख़त्म हो गया है या यूँ कहूं कि पूरा हो गया है क्यूंकि अब मैंने तेरे भीतर झाँक कर जी लिया है उन सभी सूरतों को जो तू लफ़्ज़ों से बयां नहीं क...
वो आया उस रोज मेरे दरवाज़े तक, वो ठहरा उस रोज मेरे आशियाँ पर, वो अलग बैठा रहा जब तक घुल ना गया मेरी रूह से फिर उसके लब हिलते रहे खामोश होने तक । - शालिनी पाण्डेय
अपने हिस्से का दर्द सबको ख़ुद ही सहना होता हैं क्यूँकि जश्न तो भीड़ और शोर शराबें में मनाया जा सकता है, लेकिन ग़म तो तन्हाई और अकेले में ही जिया जाता है। - शालिनी पाण्डेय