याद है तुम्हें
वो छाना का गाँव,
जहाँ खेल-खेल में
मैं बन जाती थी
तुम्हारी ब्योली...
और तुम्हारे साथ
खेतों में बोती थी
लाई, मडुआ, झंगोरा,
गेंहू और चौलाई...
आगे-आगे तुम बैल
हॉकते हुए,
पंक्ति बनाते जाते...
और पीछे-पीछे
मैं उसमें
बीज बोती जाती...
तब साथ में हमने
कई फसलें बोई
और एक अंतराल के बाद काटी,
फिर मैं चूल्हे पर
तुम्हारे लिए
मडुए की रोटी,
चौलाई का साग बनाती,
जिसे तुम अपने साथ
बण को बाँध ले जाते....
और अब
जब खेत, खलिहान,
चूल्हा और तुम
पीछे छूट गए हो,
और पढ़ते-पढ़ते
मैं निकल आयी हूँ
शहर की ओर
जहाँ कुछ भी बोने की
जगह नहीं है...
लेकिन अब भी
फुरसत मिलने पर
मैं बो देती हूं
तुम्हारे प्यार से उपजी कविता के बीज,
जो फसल बनकर
मेरी डायरी के पन्नों में
इकट्ठा हो रहे है .....
-शालिनी पाण्डेय
बण : Forest
मडुआ: Ragi
चौलाई : Amaranth
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