मेरे पास
एक कोरा पन्ना है
जिसे मैं हर रोज
कुछ रंग देती हूँ
कभी खींच देती हूँ चित्र
कभी लिख देती हूँ कविता
कभी बना देती हूँ नदी
और कभी
एक कोरा पन्ना है
जिसे मैं हर रोज
कुछ रंग देती हूँ
कभी खींच देती हूँ चित्र
कभी लिख देती हूँ कविता
कभी बना देती हूँ नदी
और कभी
इसे मोड़कर इसके बीच में
रख देती हूँ सूखा एक पत्ता
क्या जिस दिन
डूबते सूरज की उदासी,
मिट्टी की सुगंध,
चिड़ियों के गीत से भी
चिड़ियों के गीत से भी
मैं रंगती हूँ इसे ।
कई बार रात-रात भर
जागकर रंगती हूं इसे
मेरे ऊपर गिर रहे
पुरानी यादों के टुकड़ों से।
पर इतना रंगने पर भी
जागकर रंगती हूं इसे
मेरे ऊपर गिर रहे
पुरानी यादों के टुकड़ों से।
पर इतना रंगने पर भी
हमेशा आधी-अधूरी सी
तस्वीर ही बन पाती है
क्या जिस दिन
पूरी तस्वीर बनेगी,
उस दिन पूरा हो जाएगा जीवन??
- शालिनी पाण्डेय
उस दिन पूरा हो जाएगा जीवन??
- शालिनी पाण्डेय
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