उम्र के हर पड़ाव
पर हम सब
कितने उलझे हुए है,
हर ओर खड़े
हम पाते है कि
कुछ तो छूट रहा है
जो जरूरी था
किसी की तो कमी है इस ओर...
और द्वंदों से घिरे हुए
अपनी थके प्राण
को आराम देने के प्रयास में
हर रात,
ये भरम लिए
सो जाते है
कि शायद
कल सुबह एकमत होगा।
- शालिनी पाण्डेय
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