Sunday 19 April 2020

उलझे हुए

उम्र के हर पड़ाव
पर हम सब
कितने उलझे हुए है,
हर ओर खड़े
हम पाते है कि
कुछ तो छूट रहा है
जो जरूरी था
किसी की तो कमी है इस ओर...

और द्वंदों से घिरे हुए
अपनी थके प्राण
को आराम देने के प्रयास में 
हर रात, 
ये भरम लिए 
सो जाते है 
कि शायद 
कल सुबह एकमत होगा।

- शालिनी पाण्डेय 



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