जो बनते चले गए
हमारे असंख्य पुरखों
की यात्रा से,
वो यात्रा
जो उन्होंने तय की
जंगल से निकल कर
सभ्यता बसाने में,
आदिम जनजाति से
सभ्य समाज के निर्माण की यात्रा...
यात्रा के इस क्रम में
बनते चले गए
असंख्य रास्ते
अलग-अलग गंतव्य की ओर,
और इन्हीं
असंख्य रास्तों के बीच
जारी है मेरी खोज...
उस राह की खोज
जो मुझे पहुँचा सके
वापस इस सभ्यता से
पुरखों के बसाये
पहाड़ की ओर।
- शालिनी पाण्डेय
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