Monday 20 April 2020

छोटी कहानी : 2

देख तो, झील फिर से डबाडब भर गई है। हाँ, इस साल काफी बरसात हुई ना, दूसरी सहेली ने उत्तर दिया। 

यार, उदयपुर मैं तो काफी पानी है, इसे देखकर लगता नही कि राजस्थान में है। दूसरे पर्यटक ने कहा - हाँ, यहाँ का राजा समझदार था, इसलिए इतनी बड़ी झील बनवाई।

एक प्रेमिका अपने प्रेमी से - "कितना खूबसूरत सूर्यास्त है, लगता है जैसे कैनवास पर जैसे उजले रंगों को उड़ेल दिया हो।"

मिसेज गुप्ता अपनी बेटी से- सुधा, तुम और मानव भी ये राजस्थानी पोशाक पहन कर फ़ोटो खिंचवा लो ना, सुन्दर लगेगी तुम दोनों पर। 

लड़की, लड़के से गले मिलने के बाद विदा लेते हुए- चल अब मैं निकलती हूँ घर, सात बजने वाले है। वरना मम्मी आज भी सुनाएगी कि रोज देर से आती है कॉलेज से।

ऐसे ही कितने वार्तालाप पिछोला बरसों से सुनती आ रही है। हर मौसम, कितने ही लोग इसके सामने मिलते और जुदा होते है। कितने ही सुख-दुःख के किस्से इसके किनारे बैठ कर साँझा हुए होंगें। हम एक बार भी अगर किसी से मिलते है तो उसकी कुछ स्मृति हमारे मस्तिष्क पर अंकित हो ही जाती है। फिर पिछोला तो हर दिन सैकड़ों लोगों से मिलती-बिछुड़ती है, उनकी उदासियों, जश्नों, उमंगों, तलबों से भरे किस्से सुनती है। मैं सोचती हूँ, इस झील की लहरों पर ना जाने कितनी ही स्मृतियां बहती होंगी, जिन्हें इकट्ठा करके ढेरों कविताएँ, कहानियां और उपन्यास लिखे जा सकते है।  काश!! मैं भी थोड़े समय के लिए पिछोला बन पाती। 

- शालिनी पाण्डेय 



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