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Showing posts from 2020

जवान होने के सफर में

जवान होने के सफर में लड़कियां स्वीकार कर लेती है निर्धारित की गई अपनी नियति, वो सीख लेती है  अपने सपनों को उधेड़  किसी और के दरवाजे के लिए  क्रोशिया सीना; और निकल पड़ती हैं कभी ना खत्म होने वाली आदर्श स्त्री बन पाने की दौड़ में... - शालिनी पाण्डेय 

विस्थापित

घर की वस्तुओं को  बदला जा सकता हैं ,  चीज़ों को विस्थापित  किया जा सकता हैं, लेकिन, नहीं बदला जा सकता है  तुम्हारे लिए मेरे प्रेम को; ना ही विस्थापित  किया जा सकता है तुम्हें किसी और प्रेमी से। - शालिनी पाण्डेय

साधना

तुम्हारी प्रेमिका हो जाने में न केवल जुड़ी हुई हैं संवेदनाएं और भावनाएं; बल्कि, इस प्रेम के साथ जुड़ी हुई है, साधना परम सत्य को खोजने की... - शालिनी पाण्डेय 

तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें  मेरे घर की  सभी चीजों को घेरे हुए है, चाहे वो चाय की प्याली हो या मेज पर पड़ी किताब मेरे घर की बालकॉनी,  रोशनदान, छत, दीवार, खिड़की, दरवाज़े सब तुम्हारी यादों से पटे हुए है काश! इन यादों जैसे तुम भी होते मौजूद  इस घर के किसी हिस्से में... - शालिनी पाण्डेय

माँ

यूँ तो अब मुझे आदत सी हो चली है अकेलेपन और  नीरस दिनचर्या की, शहर की इस  नीरस दिनचर्या में उलझे हुए वक़्त आसानी से गुज़र जाता है लेकिन,  जब कभी हो  कोई खास दिन  जैसे कोई त्योहार या जन्मदिन तब, तुम मुझे  बहुत याद आती हो माँ। - शालिनी पाण्डेय 

मिलना

जीवन की  उबड़-खाबड़ राह के  एक मोड़ पर  किसी रोज तुम मिले  मिलना यूँ तो एक  क्रिया है  पर तुम्हारा मिलना  एक एहसास है  वो एहसास जो  बाधें रखता है  प्राणों को शरीर से  ठीक वैसे ही जैसे  डोरें बाधें रहती हैं  नाव को छोर से  खाली वक़्त में  - शालिनी पाण्डेय 

चरवाहे

एक रोज  मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास, ठीक वैसे ही  जैसे  लौट आते है चरवाहे  शिशिर के बाद अपने-अपने घरों को... -शालिनी पाण्डेय

तुम्हारे लिए

बनाई जा चुकी है  सुंदर तस्वीरें लिखे जा चुके है  सुंदर गीत, लेकिन फिर भी मैं रचना चाहूँगी  कुछ कविताएं,  खींचना चाहूँगी कुछ तस्वीरें सिर्फ तुम्हारे लिए... - शालिनी पाण्डेय

नए प्रतिमान

प्रेम के नए प्रतिमान गढ़ने  की मुझे कोई इच्छा नहीं, मैं नहीं बनना चाहती एक आदर्श प्रेमिका और ना ही चाहती हूँ  निष्कलंक जीवन, मैं बस  जी लेना चाहती हूं दुःख और आनंद के उन लम्हों को  जो हर मुलाक़ात के साथ तुम छोड़ जाते हो.. -शालिनी पाण्डेय

छप्पर

पहाड़ की यादों को समेटकर मैंने बना लिया है छप्पर, खरीद ली है कुछ भेड़े जिन्हें चराते हुए, फाग गाते हुए, बुग्यालों और गधेरों को पार कर मैं रोज़ थोड़ा -थोड़ा  चली आती हूं  तुम्हारी ओर को  सांझ अपने घर में बिताने.... - शालिनी पाण्डेय 

तुम्हारी प्रेमिका

तुमने कभी नहीं बताया कि तुम्हें मैं  किन कपड़ों में  ज्यादा अच्छी लगती हूँ तुमने कभी नहीं कहा कि मुझे कुछ करने से पहले तुमसे इजाजत लेनी चाहिए तुमने ना तो कभी  कोई वादा किया ना ही कसमें खाई साथ में जीने-मरने की तुमने बहुत नज़रे चुराई ताकि मैं ना पढ़ सकूँ तुम्हारी आँखों पर चमक  उठने वाले प्रेम को और ना ही  तुमने कभी भी चाहा  कि मैं महसूस करूं तुम्हारे भीतर के दुःखों को तुमने बहुत जतन किये  कि मैं ना पहुँच पाऊं  तुम्हें अंतर्मन तक लेकिन देखो ना तुम्हारे कुछ ना कहने  और ना करने से भी तुम्हारे लिए मेरे प्रेम में  कोई फर्क नहीं पड़ा, मैं थी कल भी तुम्हारी प्रेमिका  हूँ आज भी और  रहूंगी हमेशा ही। - शालिनी पाण्डेय

क्या तुम मुझे याद करोगे?

  क्या तुम मुझे याद करोगे? जब सांझ में दूर पहाड़ी से  टकराकर आती आवाज़ेंं  तुम्हें सुनाया करेगी  तन्हाइयों भरा राग.... क्या तुम मुझे याद करोगे? जब बारिश की झमाझम पत्तों, टहनियों से गिरते हुए तुम्हारे किवाड़ के सामने गुनगुनायेगी सावन का गीत ... क्या तुम मुझे याद करोगे? जब मैं समा जाऊंगी काले स्याह आकाश में, फिर से किसी पहाड़ पर फ्योंली बनकर फूटने के लिए... -शालिनी पाण्डेय 

जीने की चाह

बचपन की यादों से भरा गांव का आंगन अब धुंधला हो चला है; सांझ की हवा के साथ सैम ज्यूँ के थान से आने वाली घण्टियों की खनक  गुम सी गयी है; गोबर से लीपे हुए अम्मा के चूल्हें की  लकड़ियों की ताप अब मुझ तक नहीं पहुँचती; जो भी मुझे प्यारे थे,  उन सभी रिश्तों ने दूरी की एक परत ओढ़कर  खुद को अलग कर लिया है; और वो जीवन !! जिसे जीने की  मुझे बहुत चाह थी अब कहीं खो सी गयी है। - शालिनी पाण्डेय

नाराज़

मैं हजार कोशिशें  कर भी लूं अगर तुम्हें भुलाने की, एक बार को कह भी दूँ कि तुमसे नाराज़ हूं लेकिन सच तो ये ही है कि ना तुमसे  नाराज़ रहा जा सकता है ना भुलाया ही  जा सकता है। -शालिनी पाण्डेय 

सारी उम्र

टपकती बरसात अच्छी किताब फ़ैज़ की नज़्म और तुम्हारे साथ मैं अपनी सारी उम्र गुज़ार सकती हूं। - शालिनी पाण्डेय 

बारिश और गिले शिकवे

एक अंतराल के बाद किसी अपने के गले मिलने से मन पर इकठ्ठा हो रहे गिले-शिक़वे वैसे ही  दूर हो जाते है जैसे लंबे इतंजार के बाद आई बारिश से छतों पर जमा  धूल और मिट्टी..... - शालिनी पाण्डेय 

तमाशा

तुम्हें समझना मुश्किल है, पर तुम्हें सुलझाना  और भी मुश्किल है जैसे ही लगता है  समझ आ रही हो नए चौराहों  पर लाकर छोड़ देती हो पर अब सूरतों के बाज़ार से दूर सिर्फ अपने साथ  रहते हुए लगने लगा है थोड़ा लंबा ही सही  पर आखिर में तुम एक तमाशा ही तो हो  जिंदगी... - शालिनी पाण्डेय 

रामवती

बादल घिर आये है, सामने की तरफ आसमान का रंग स्याह हो गया है। तेज हवा ने सारे बादलों को आसमान में एक तरफ इकठ्ठा कर दिया है। मन ही मन में सोच रही थी आज बहुत बारिश आएगी। मैं छत पर खड़ी बादलों की ओर देख रही थी,कि तभी एक आवाज़ आयी - बारिश आयेगी और मेरी छत उड़ जायेगी। मैंने नीचे की ओर देखा तो रामवती थी। वो एक बड़े से पत्थर के ऊपर कपड़ों पर साबुन लगा रही थी। . . रामवती और मैं एक दूसरे को तीन महीनों से जानते है। 'जानते है' ये कहना ठीक नही होगा; बल्कि ये कहना- 'तीन महीनों से हम एक दूसरे को यूँ ही देखा करते है' ज्यादा ठीक होगा। आज तक किसी ने दूसरे से एक लफ्ज़ भी नही कहा। मैं जब भी छत पर टहलती हूँ, वो नीचे कुछ काम कर रही होती है और नजरें मिल जाने पर दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते है। बस इतना ही संवाद है हम दोनों के बीच।  रामवती की उम्र यही कोई 25-26 साल होगी या फिर इससे भी कम। उसके 2 बच्चे है, जिनके साथ वो कंस्ट्रक्शन की साइट पर बने ईट के बने कामचलाऊ घर में रहती है जिसकी छत पर एक प्लास्टिक की पन्नी लगी है। . . रामवती के लफ़्ज़ों को सुनने के बाद मैं सोच रही थी कि काश! इतनी ही बारिश आ...

साथ में जिये लम्हें

साथ में जिये लम्हें भीतर के किसी कोने में थोड़ी जगह घेरे रहते है और शुष्क मौसम से ऊब चुकी साँसों को  हवा देकर जिंदा रखते है.... - शालिनी पाण्डेय 

रोज कुछ

रोज कुछ उम्मीदें बिखर जाती है कुछ सपने अधूरे रह जाते है और कुछ वादे दहलीज की ओर टकटकी लगाए दम तोड़ जाते है। - शालिनी पाण्डेय 

उदासियां

खिड़कियों को लाँघ कर किवाड़ों को फांद कर झरोखे की जालियों से भीतर चली आती है उदासियां उन्हें कोई बुलावा नहीं देता इसलिए, बेवक़्त  आ जाया करती है उदासियां। - शालिनी पाण्डेय 

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से: 1

लॉकडाउन, कोरोना और सामाजिक दूरी के किस्से दोपहर की धूप में वो सड़क किनारे पड़े कचरे में से अपने काम की चीजें इकट्टा कर रहा था। कुछ खाली बोतल, कुछ गत्ते के टुकड़े उसने बीन कर अपनी साईकल के दोनों तरफ लगाये बड़े से  एक कट्टे में भर लिए। कुछ देर के लिए उसका चेहरा मेरी तरफ को मुड़ा। उसके बाल कुछ काले कुछ सफेद से थे, वो सवरे हुए नहीं थे। नाक को ढकने के लिए, एक चेक वाला रुमाल उसने चेहरे पर बांंधा हुआ था। उसके कपड़े और हाथों पर काफी धूल जमा थी।  काम की चीजों को बीन लेने के बाद आगे बढ़कर, उसने साईकल को सड़क के किनारे एक छाव पर लगाया, उसी जगह जहां पहले चाय की टपरी हुआ करती थी लॉकडाउन से पहले। एक छोटी प्लाटिक की खाली बोतल उसने अपने साईकल के आगे वाले बैग में से निकली और वो दूध की दुकान के सामने की ओर कुछ कदम चला। सामने एक पानी का नल था, उसने टोटी खोली लेकिन पानी नहीं आया। दुकान में से एक बच्चा बाहर आया और बच्चे ने पास लगे मोटर के बटन को दबाया और पानी की एक धार उसके हाथों पर गिरने लगी। उसने सिर्फ पानी से अपने हाथ धोये और अपनी छोटी सी बोतल में पानी भरकर पीने लगा। फिर उसने खाली बोतल को अपने साईकल के...

एक वक्त था

एक वक्त था जब शाम कल्पनाओं में  डूबी रहती थी छुट्टी का दिन  घाट किनारे गुजारा जाता था एक वक्त था जब तुम्हें सामने पाकर  खुशियां सम्हाले ना सम्हलती थी चाय पर बातों का सिलसिला  खत्म नहीं होता था और अब सिर्फ वक़्त है ना बातें है, ना तुम हो,  ना घाट का किनारा,  ना ही रंगीन शामें है... अब बस इन्तज़ारी है हालातों के सुधर जाने की और किसी रोज फिर से तुम्हें गले लगाने की। - शालिनी पाण्डेय 

मजदूर

जब आर्थिक गतिविधियां चालू थी तब मजदूर जुटे हुए थे हम सभी के घरों की  नींव और छतों को बनाने में और अब  जब सब कुछ रुका हुआ है  वो चले जा रहे है मीलों दूर उन घरों की ओर जिनके भीतर इस बरसात भी पानी घुस आएगा... - शालिनी पाण्डेय 

संभावनाएं

जटिल परिस्थिति, घनघोर उदासी और अनमनेपन से बिखर रहे जीवन को; तुम्हारा साथ  नई संभावनाओं, उजली आशाओं से भर जाता है....  - शालिनी पाण्डेय

नदी और नाव

तुम्हारा और मेरा प्रेम है नदी और नाव का संयोग.. तुम विशाल,  अविरत बहने वाली नदी हो  और मैं लकड़ी से बनी तुम्हारे ऊपर ठहरी हुई नाव हूं मेरे बिना भी तुम हो और रहोगे... लेकिन तुम्हारे बगैर मेरा हो पाना तो संभव नहीं... - शालिनी पाण्डेय

सफेद दीवार

जिंदगी, कमरे की उस सफेद चमकती दीवार की तरह हो चली है, जिस पर गोंद के दाग छूटे रह जाने के डर से, हम अपनी पसंदीदा तस्वीरें और पोस्टर चिपकाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। - शालिनी पाण्डेय

कलाकार की मृत्य

एक कलाकार अपने अभिनय से दर्शकों को हँसाता, रुलाता, गुदगुदाता तो है ही। लेकिन इसके साथ-साथ वो अपने अभिनय से झकझोरता है, आपके भीतर मरती जा रही इंसानी संवेदनाओं को। वो चीखने पर मजबूर करता है, आपके भीतर ठंडी हो कर, जम चुकी, दबी आवाज़ों को।  उसके अभिनय से आप अपने भीतर के उन अँधेरे पहलुओं पर झांकने की हिम्मत जुटा पाते है, जिन्हें सूरज की रोशनी भी आपको नहीं दिखा पाती। अच्छा कलाकार जीवित रखता है आपके भीतर की बगावत को, आपके आत्म- सम्मान को। आपके भीतर मोहब्बत की बेल को पनपाने के लिए वो खाद, हवा, पानी जैसा काम करता है। अपने अभिनय से वो सभी धर्मों, सरहदों को छोटा साबित कर, आपको एक तर्कसंगत और संवेदनशील मनुष्य बनने हेतु प्रेरित करता है। हाँ, मृत्यु नियति है, हर उसकी जिसके भीतर जीवन है। ये हम सभी जानते है कि "जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी एक दिन हो जानी है"। भले ही आप जैसे और हम जैसे असंख्य लोगों की मृत्यु के कोई मायने नहीं होते।  लेकिन एक अच्छे कलाकार की मृत्यु के मायने होते है। एक कलाकार की मृत्यु सिर्फ उसकी अकेले की मृत्यु नहीं होती, बल्कि उससे जुड़े असंख्य दर्शकों के जज्बातों, सप...

यादों का पहाड़

ये जो तेरे और मेरे बीच के फासले है, उन पर मैं रोप दूंगी देवदार, सभी दुःखोंं को इकट्ठा कर बना दूंगी, एक नदी और विचरने के लिए बसा लूंगी, यादों का पहाड़। - शालिनी पाण्डेय

कोरा पन्ना

मेरे पास एक कोरा पन्ना है जिसे मैं हर रोज कुछ रंग देती हूँ कभी खींच देती हूँ चित्र कभी लिख देती हूँ कविता कभी बना देती हूँ नदी और कभी  इसे मोड़कर इसके बीच में  रख देती हूँ सूखा एक पत्ता डूबते सूरज की उदासी,  मिट्टी की सुगंध, चिड़ियों के गीत से भी मैं रंगती हूँ इसे । कई बार रात-रात भर जागकर रंगती हूं इसे मेरे ऊपर गिर रहे पुरानी यादों के टुकड़ों से। पर इतना रंगने पर भी हमेशा आधी-अधूरी सी  तस्वीर ही बन पाती है क्या जिस दिन  पूरी तस्वीर बनेगी, उस दिन पूरा हो जाएगा जीवन?? - शालिनी पाण्डेय

दिल की जेब

मेरे दिल की जेब  प्यार का सीपी संजोये हुए है समंदर किनारे बटोरी यादों भरी रेत समेटे हुए है.....   आज भी जब कभी  टटोलती हूँ इस जेब को  तो लहरें तेरा प्यार  मेरी साँसों तक ले ही आती है.....  - शालिनी पाण्डेय 

चांद के घाव

आज रात छत पर जाते ही   फूट-फूट कर रोने का मन किया,  चांद की चमक के पीछे छुपे घावों को देख लेने भर से। - शालिनी पाण्डेय 

तुम कुछ नहीं कहते

गहरे दर्द में भी तुम कुछ नहीं कहते, बस, उसे छुपा लेते हो अपने भीतर की तहों में....  जैसे छिपा लेती हैं धरती अपने अंदर उजड़े पहाड़ों और जंगलों की वेदना को.... - शालिनी पाण्डेय

गुलमोहर

तुम्हें याद है गुलमोहर का पौधा, वर्षों पहले जिसको लगाया था, आंगन में ? हवा के साथ हर सवेरे  उसकी पंखुड़ियां  गुनगुनाती है, कोई मौसम अब चुरा ना सकेगा तेरी खुशबू,  यूं ही हर रोज तू महका करेगा मेरे दामन में। - शालिनी पाण्डेय 

लिखने वाले के भीतर

लिखने वाले के भीतर मौजूद रहते है एक साथ कई किरदार, किरदार जिन्हें वो अपने आस-पास से अनायास ही बटोर  लेता है... किरदार जिनसे वो तन्हाई में बातें करता है, जो रातों की नींद उड़ा ले जाते है.. किरदार, जो उसके साथ भीड़ का हिस्सा बनते है.. कुछ साथ में खाते, साथ में मुस्कुराते भी है.. पर इनमें से कुछ किरदार  तो अभिव्यक्ति पाकर जवां हो जाते है और कुछ  शब्दों के आभाव में दम तोड़ देते है। - शालिनी पाण्डेय 

छोटी कहानी : 3

मैं लौट जाऊंगी, एक दिन पहाड़ को ... कब ??.......  ये निश्चित तौर पर अभी नहीं कह सकती। शायद जब कंक्रीट से मन ऊब जायेगा तब या फिर शायद जब नौकरी मिल जाएगी या फिर शायद तब, जब अम्मा की कहानियों और जीवन के किरदार मेरा हाथ पकड़ मुझे खींच ले जायेंगे, उन सभी जगहों पर जो मेरी कल्पनाओं को रंगते हैं, वो किरदार जो अम्मा ने मुझे दिए, पुरखों की धरोहर के रूप में। अभी तक पहाड़ की दुनिया का चित्र मैंने बस उनके जीवन को सुन कर खींचा हैं।  मैंने पहाड़ को उनके किस्से और कहानियों के रूप में जिया हैं;  मेरी खुद की कोई कहानी नहीं है पहाड़ पर। भाभर में मैंने उनको सफ़ेद साड़ी में ही देखा । उनके सुखी और सुहागन होने को मैंने बुरांश के बूटों, घास के डानों, बण को ले जाने वाले खाजों, मडुए से भरे भकार, अखरोट के पेड़, नौले के पानी, पनार की गाड़, घट्ट पीसने, ब्यासी में देवता पूजने, तल बाखई की चहलपहल, तौली में भात पकाने, सकुन आखर गाने, ठुल कुड़ी वाले पड़ोसियों आदि से जोड़ दिया। इन सभी चीजों से बिछड़ने की टीस और भाभर आने पर दादा की मौत के दुःख से वो आखिरी सांस तक जद्दोज़हद करती रह...

छोटी कहानी : 2

देख तो, झील फिर से डबाडब भर गई है। हाँ, इस साल काफी बरसात हुई ना, दूसरी सहेली ने उत्तर दिया।  यार, उदयपुर मैं तो काफी पानी है, इसे देखकर लगता नही कि राजस्थान में है। दूसरे पर्यटक ने कहा - हाँ, यहाँ का राजा समझदार था, इसलिए इतनी बड़ी झील बनवाई। एक प्रेमिका अपने प्रेमी से - "कितना खूबसूरत सूर्यास्त है, लगता है जैसे कैनवास पर जैसे उजले रंगों को उड़ेल दिया हो।" मिसेज गुप्ता अपनी बेटी से- सुधा, तुम और मानव भी ये राजस्थानी पोशाक पहन कर फ़ोटो खिंचवा लो ना, सुन्दर लगेगी तुम दोनों पर।  लड़की, लड़के से गले मिलने के बाद विदा लेते हुए- चल अब मैं निकलती हूँ घर, सात बजने वाले है। वरना मम्मी आज भी सुनाएगी कि रोज देर से आती है कॉलेज से। ऐसे ही कितने वार्तालाप पिछोला बरसों से सुनती आ रही है। हर मौसम, कितने ही लोग इसके सामने मिलते और जुदा होते है। कितने ही सुख-दुःख के किस्से इसके किनारे बैठ कर साँझा हुए होंगें। हम एक बार भी अगर किसी से मिलते है तो उसकी कुछ स्मृति हमारे मस्तिष्क पर अंकित हो ही जाती है। फिर पिछोला तो हर दिन सैकड़ों लोगों से मिलती-बिछुड़ती है, उनकी उदासियों, जश्नों, उमंगों, तलबों से भरे...

छोटी कहानी : 1

हाँ, मैं निराश हो जाती हूँ कभी। निराश होने पर मैं सब काम अनमने ढंग से करती हूं। तब मुझे कुछ करने का मन नहींं करता। तब मेरा दिल चाहता है कि बस तुम्हारे कांधे पर सिर टिकाकर झील के पानी को देखती रहूँ। या फिर रानी रोड के किनारे बैठकर तुम्हारे साथ चांदनी रात को निहारूँ या फ़िर झील के किनारे-किनारे तुम्हारा हाथ थामे चलते रहूँ। या फिर साथ में हम किसी पहाड़ की चोटी पर चले। या फिर किसी बड़े से पत्थर पर बैठकर, पैरों को पानी में डुबोये हुए, नदी का संगीत सुने । या फिर तुम मेरे सामने बैठे रहो और मैं तुम्हें पलक झपकाएं बिना यूं ही देर तक देखती रहूँ। या फिर तुम्हारी बालों पर अपनी अंगुलियां चलाती रहूँ। या फिर चाय पीते हुए, तुम्हारे प्याले में से एक घूट चुरा लूं।  तुमसे दूर रहते हुए मन कभी उचट सा जाता है, तब मुझे तुम्हारे अलावा जीने की कोई वजह नज़र ही नहीं आती। मुझे तब महसूस होता है ये डिग्री, पैसे, समय, किताबें, गीत, कविताएं, सब व्यर्थ है अगर तुम्हारा साथ ना हो तो। तब मुझे हर तरफ तुम और तुम्हारी यादें नज़र आती है। तब इन्हीं यादों के बीच, मैं कल्पना करती हूं कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, और दूर एक पहाड़ी पर ह...

उलझे हुए

उम्र के हर पड़ाव पर हम सब कितने उलझे हुए है, हर ओर खड़े हम पाते है कि कुछ तो छूट रहा है जो जरूरी था किसी की तो कमी है इस ओर... और द्वंदों से घिरे हुए अपनी थके प्राण को आराम देने के प्रयास में  हर रात,  ये भरम लिए  सो जाते है  कि शायद  कल सुबह एकमत होगा। - शालिनी पाण्डेय 

पटरी पर

देखो !! समय की पटरी पर जीवन भाग रहा है,  कुछ फिसल गया कुछ निकल गया कुछ निकला जा रहा है... बीते दिनों की ग्लानि लिए भविष्य की अनिश्चितता लिए, देखो !! समय की पटरी पर जीवन भाग रहा है।  - शालिनी पाण्डेय 

माँ

ये सच है कि कई बार अपनी दुनिया में उलझे हुए मैं भूल जाती हूँ तुम्हें फ़ोन करना, मैं कई बार तुमसे ये भी नही पूछती कि "क्या तुमने खाना खाया? तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं?" कई बार फ़ोन रखने से पहले मैं भूल जाती हूँ तुमसे कहना- "अपना ध्यान रखना" लेकिन माँ, अपनी सारी उलझनों में भी तुम ये सब  कभी भी नहीं भूलती.... - शालिनी पाण्डेय 

वो प्रेम है

वो जो महसूस होता है  हथेलियों को छूने पर, वो जो भर आता है, आंखों में  और फिर चमक उठता है, कपाल पर वो प्रेम है... वो जो उमड़ता है, आलिंगन में और टीस बन जाता है, जुदाई पर वो जो उतरता है, रोम-रोम में  और भिगो देता है, सभी कुछ वो प्रेम है... उसे शब्दों में बाँँधा नहीं जा सकता, ना ही शब्दों से तोला जा सकता है, उसे तो बस जिया जा सकता है मौन के पलों में  मेरे द्वारा, तुम्हारे द्वारा। - शालिनी पाण्डेय 

चाह

 गहरा सा कुछ पन्ने पर लिखूं और खो जाऊं चाह है अगले  सभी जन्मों भी तुम्हें ही पाऊं । - शालिनी पाण्डेय 

मैं सोचती थी

मैं सोचती थी कोई कविता लिखूँ तुम्हारे लिए मेरे लिए और उन सभी प्रेमिकाओं के लिए जिन्होंने अपने प्रेमियों से बिछड़ने का दर्द महसूस किया... लेकिन, मैं नहीं लिख पाई ऐसी कोई कविता, मैं बहुत नासमझ थी या यूं कहूँ असमर्थ थी, कभी शब्द नहीं मिले कभी वक़्त ने उलझाए रखा... और अब महामारी के इस दौर में जब कुछ शेष नहीं रह गया मैं ये कविता लिखने बैठी हूं... क्योंकि अब भी  चाय की प्याली पर तुम्हारे होठों का स्वाद  महसूस हो रहा है, गुलाबी पंखुड़ियों  पर ठहरी ओस से तुम्हारा प्यार चू रहा है, आज भी उस पुल पर,  ढलती शामें मिलन की आस का इंतज़ार करती है, रास्ते में बिखरे ठीठों को अब भी लगता है किसी रोज हम और तुम उन्हें बटोरने आएंगे.... - शालिनी पाण्डेय 

पुरखों के बनाये रास्तें

रास्ते,  जो बनते चले गए हमारे असंख्य पुरखों की यात्रा से, वो यात्रा  जो उन्होंने तय की जंगल से निकल कर सभ्यता बसाने में, आदिम जनजाति से  सभ्य समाज के निर्माण की यात्रा... यात्रा के इस क्रम में बनते चले गए असंख्य रास्ते अलग-अलग गंतव्य की ओर, और इन्हीं  असंख्य रास्तों के बीच जारी है मेरी खोज...  उस राह की खोज  जो मुझे पहुँचा सके  वापस इस सभ्यता से  पुरखों के बसाये  पहाड़ की ओर। - शालिनी पाण्डेय

अतीत के चेहरे

कभी-कभी राह में  लौट कर आ जाते हैं अतीत के चेहरे पुरानी तस्वीरें लिए... कभी जब वो झुंड में एक साथ चले आते है मधुमक्खियों जैसे, तो बना डालते है यादों का छत्ता, और उसे भर देते है प्यार के शहद से, वो पराग के साथ चुन लाते है, सभी सपने जो हम और तुम भूल रहे थे दिनचर्या में, और फिर से बुन कर सच कर देते है  वही मीठा लम्हा.. हाँ, हाँ, उतना ही मीठा, उतना ही सच्चा, जितने की तुम और तुम्हारा प्रेम।  - शालिनी पाण्डेय

बीज

याद है तुम्हें वो छाना का गाँव, जहाँ खेल-खेल में मैं बन जाती थी तुम्हारी ब्योली... और तुम्हारे साथ  खेतों में बोती थी लाई, मडुआ, झंगोरा,  गेंहू और चौलाई... आगे-आगे तुम बैल हॉकते हुए, पंक्ति बनाते जाते... और पीछे-पीछे मैं उसमें  बीज बोती जाती... तब साथ में हमने कई फसलें बोई और एक अंतराल के बाद काटी, फिर मैं चूल्हे पर तुम्हारे लिए मडुए की रोटी, चौलाई का साग बनाती, जिसे तुम अपने साथ  बण को बाँध ले जाते.... और अब  जब खेत, खलिहान,  चूल्हा और तुम  पीछे छूट गए हो, और पढ़ते-पढ़ते मैं निकल आयी हूँ शहर की ओर जहाँ कुछ भी बोने की जगह नहीं है... लेकिन अब भी फुरसत मिलने पर मैं बो देती हूं  तुम्हारे प्यार से उपजी  कविता के बीज, जो फसल बनकर मेरी डायरी के पन्नों में  इकट्ठा हो रहे है ..... -शालिनी पाण्डेय  ब्योली: Wife बण : Forest मडुआ: Ragi चौलाई : Amaranth

छुट्टी वाली सुबह

हर छुट्टी वाली सुबह तुम निकल जाते हो पहाड़ों की ओर किसी खोज में, हर मोड़ पर रुक कर देखते हो कि शायद कहीं आज वो तुम्हारा इंतज़ार कर रही हो बनाते हो पुल नदी के उस पार रह रही प्रेमिका के लिए, पत्थर पर बैठकर दिन भर  तलाशते हो सम्भावनाओं को और फिर थककर शाम को लौट आते हो कुछ नई तस्वीरों, नई कविताओं के साथ। - शालिनी पाण्डेय 

ऊब

एक दिन उसने झील किनारे खड़े बूढ़े पेड़ से पूछा- हर मौसम में एक ही जगह  खड़े खड़े  तुम ऊब नहीं जाते? पेड़ ठहाका मार कर हँसा और बोला- ऊबते इंसान है कभी रिश्तों से, कभी जगहों से, कभी काम से, कभी जीवन से, मैं तो एक पेड़ हूं मेरे पास  ऊबने का समय ही कहाँ है!! मैं तो निरन्तर  तुम्हारे लिए छावं, भोजन, लकड़ी  और साँसें जुटाने में लगा हुआ हूँ। - शालिनी पाण्डेय 

आपदा

आपदा का सन्नाटा  गुज़रने के बाद कुछ लोग अपनी जान गवां चुके होते है, कुछ अपने करीबियों को खो चुके होते है, और  कुछ शेष रह जाते है अगली आपदा के साक्षी बनने के लिए... - शालिनी पाण्डेय 

स्वतः

सर्दी की धूप, चाय की प्याली, पतझड़ के पत्ते, तारों वाली रात, टपकती बरसात और तुम्हें देखने पर कविताएं स्वतः फूट पड़ती है स्याहियों से। - शालिनी पाण्डेय

सांझ

सांझ जैसे जोड़ती है उजाले को अंधेरे से वैसे ही आस  जोड़े हुए है एक जीवन को दूसरे से.... - शालिनी पाण्डेय

तुम्हारे बगैर

यूँ तो लफ़्ज़ों में बया करना मुश्किल है, लेकिन अगर दुनिया ख़त्म हो रही हो तो  मैं  तुमसे बस इतना कहना चाहूंगी कि  तुम्हारे बगैर सभी कविताएं सभी गीत व्यर्थ है। - शालिनी पाण्डेय

पहाड़ से दूर

पहाड़ से दूर, रेत के टीले पर, अपने बिस्तर में सर रखते ही, मैं पहाड़ को साफ देख पाती  हूँ.. . .  मैं देखती हूँ अपने पुरखों के खपड़ैल वाले घर को, जिसकी छत इस बरसात गिर गई,  गोठ में बँँधी भूरी गाय को, जिसके बछड़े को बाघ ले गया , पिनालू के पत्तों पर जमा ओस में देखती हूँ बिंब पिताजी के बचपन का, जिसमें वो आँगन के तीर में नीचे गिरे अखरोट अपनी जेब में भर रहे है....  नौले से पानी लाने वाले  कच्चे रास्ते के  छोर पर उगे  सिननें की पत्तियों के बीच की खाली जगह से देखती हूँ अपनी आमा को उनकी बूटे वाली पीली साड़ी में। और मैं देख पाती हूँ भाभर से पहाड़ जाने वाले रास्ते और अपने बीच के फासलों को जिन्हें मैं इस जीवन पाट नहीं पाई और ना ही जा सकी लौटकर परिवार के पास । - शालिनी पाण्डेय

बैठकी होली

सर्द मौसम में गुनगुनाहट भरती होल्यारों की बैठकी जो हारमोनियम, तबले पर  लय साधते गाती है  पीड़ी दर पीढ़ी आत्मसात किये  होली के गीत.... ये संजोए हुए है वर्षों से पुरानी परंपरा को, जिसकी नींव डाली रामपुर के उस्ताद अमानुल्लाह  और आगे बढ़ाया गणिका रामप्यारी ने... आगमन पर बसंत के होल्यार गाते राधा कृष्ण की होली, शिवरात्रि के बाद गायी जाती शंभु की होली, और आखिरी दिनों में  गायी जाती  रंगों की होली... होली के ये गीत  गूँथे रहते है  अवधी, बृज, मगधी,  भोजपुरी के शब्द स्थानीय लोगों की  संस्कृति के साथ... सूर, मीरा, कबीर से लेकर भक्ति, प्रेम  और प्रकृति का  वर्णन करते हुए,  राग धमार से शुरू और  राग भैरवी पर  समापन होती है  कुमाऊं की बैठकी होली । - शालिनी पाण्डेय 

I became yours

It was a noon  In the March When things Started to  Grew stronger Sailing on a boat on the waves First time I imagined  Sailing my  Life boat  Together with you  On touching upon By cold breeze When I tightly holded  yours hand  I felt the Warmth of you  Some kind of  Energies  Tied my heart  With yours  At that very moments My soul Became yours.. - Shalini Pandey

O Woman

O woman!! From your birth You have been kind, You works hard, You love unconditionally, You make sacrifices,  But ..... When you grow Acquire life skills, Get good education, Learn to be brave, Overcome your fears, Chase your dreams and Allow yourself to blossom, not to compete a man but to be a WOMAN. HAPPY WOMEN'S  DAY 2020 -Shalini Pandey

प्रेमिकाएं

सभी प्रेमिकाएं   नहीं चाहती  घर और गाड़ियां , सभी प्रेमिकाएं  नहीं करती  हर वक़्त श्रृंगार , सभी प्रेमिकाएं  नहीं मांगती  आठों पहर प्रेमी का  ध्यान , सभी प्रेमिकाएं  नहीं रखती  प्रेम में वक़्त का हिसाब , कुछ प्रेमिकाएं ताउम्र  मन में जगाये रहती है   प्यार की लौ  और उन्हें चाहिए होते है  बस, मौन के कुछ क्षण  अपने प्रेमी के साथ।   - शालिनी पाण्डेय 

मैं धूप हूँ

मैं धूप हूँ और अँधेरे तुम हो मेरे सच्चे प्रेमी , तुम कहाँ कभी मुझसे जुदा होते हो !! साँझ के ढलते ही तुम मुझे आलिंगन करते हो और माथा चूम कर समेट लेते हो अपने भीतर और फिर भोर के होते ही धूप जैसे मुझे बिखेर देते हो और खुद सिमट आते हो मेरे भीतर। - शालिनी  पाण्डेय

पहाड़ से विदाई

निस्वास के साथ  विदा ले तो ली  पहाड़ से लेकिन , आखिरी सांस तक आमा ने सिर्फ पहाड़ को जिया , उन्होंने आँगन में समेटे रखा  सफेद डानों को, भकार को भरे  रखा दादा की यादों से और फौले में छलकने दिया नौले का पानी।  सफ़ेद साड़ी में उन्होंने बटोरे  बुरांस के बूटे, बरसात में पार  की  पनार की गाढ़ और  साँझ के उद्देख  में जगाया थान में दीपक। हर रोज   उनकी आंखों में पहाड़ चमकता था और यहीं भाभर में उनकी डबडबाई आंखों में , मैंने पहली बार देखा था पहाड़ को। - शालिनी  पाण्डेय  निस्वास: departing with memories  आमा: grandmother डानोंः hills भकार: storage bin for grains फौलाः pot made of copper used for fetching water नौलाः freshwater source in hills गाड़: seasonal stream थानः temple of local deity उद्देख: With heavy heart