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Showing posts from 2019

चले आते हो

जब अहसास लोटते है, शब्द झूलते है, बूंदे बरसती है, चित्र बिखरते है, तुम शांत चित्त , करुणाशील आँखे, गंभीर स्वभाव, विशाल हृदय हो, आँखें मूँदते ही चले आते हो। - शालिनी पाण्डेय 

तुम हो

तुम हो कुछ हासिल, कुछ बेहासिल से तुम हो थोड़े जिद्दी, थोड़े पागल से तुम हो थोड़े गम, थोड़ी खुशी जैसे तुम हो थोड़े रास्ते, थोड़े मंजिल जैसे तुम हो थोड़े पास, थोड़े दूर जैसे तुम हो थोड़े मिले, थोड़े खोये जैसे तुम हो थोड़े धूप, थोड़े बारिश जैसे तुम हो थोड़े तुम जैसे, थोड़े मुझ जैसे। ~ शालिनी पाण्डेय

खामखा

कभी कभी जिंदगी उलझ जाती है बालों की तरह और मैं  मेरे उलझे बालों की तरह  इसे भी रहने देती हूं अनसुलझी । अब जब इसे  उलझने का इतना ही शौक है तो  क्यूं खामखा इसे सुलझाना?? - शालिनी

मिठास

तुम पास रहो तो मिठास लगती है तुम्हारे बिना जिंदगी उदास लगती है... ये माना कि मसले और भी होंगे  जिनमें तुम मसगूल रहते होगे, पूनम के चाँद जैसे ही मिल लो कभी कबसे आँखें तुम्हारा इंतजार करती है... - शालिनी पाण्डेय 

धर्म भक्तों

बिगड़ती अर्थव्यवस्था में जब नहीं मिलेगा रोजगार, दिन में कमाने वाले मजदूर  शाम को खाली हाथ ही लौट जाएंगे, जब नहींं जल पायेगा रात को किसी गरीब के घर चूल्हा, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जब पिघल जाएंगे ग्लेशियर, प्रदूषण बढ़ते-बढ़ते जब नहीं बचेगी साफ आबोहवा, ना होगा पीने का पानी, बंजर हो रहे होंगे खेत-खलिहान, जब धरती पर नहींं रहेगा   इंसानियत वाला धर्म..... धर्म का मतलब समझे बिना ही चौकस हो जाने वाले भक्तों, तुम्ही बताओ,  तब क्या; तुम किसी भी धर्म की छतरी तले  आने वाली संतानों को प्रलय से बचा पाओगे?? - शालिनी 

धसता सा इंसान

आधुनिक तकनीकियों से परिपूर्ण   कंक्रीट के बनाये इस जंगल में झुलसते-झुलसते  मन उलझता जाता है, भीतर का इंसान, धंसता जाता है... वहीं, एक पेड़ों से बना जंगल है जिसकी छांह में  कुछ देर सुस्ता लेने भर से, कई उलझनें सुलझ जाती है और भीतर का धंसता इंसान  निकलता सा प्रतीत होता है.... - शालिनी 

तुम्हारी ओर

सर्दी की हर शाम, पहाड़ी के उस ओर, जिस तरफ तुम रहते हो, जहाँ सूरज छिपता है... मैं, इस ओर से रोज देखती हूँ... इसे, तुम्हारी ओर आते हुए, पर, कभी आ ना सकी, इसके साथ, तुम्हारी ओर को। -- शालिनी

अच्छा लगता है

मुझे, उसका हाथ थामकर ,  पहाड़ की चोटी  पर चढ़ना अच्छा लगता है,  जंगल की गोद से गुजरते हुए संकरे रास्तों पर  उलझना अच्छा लगता है, गिरने पर , उसकी हथेली पकड़ कर सम्भलना अच्छा लगता है, किसी पत्थर पर बैठ  गुनगुनी धूप सेंकते हुए सुस्ताना अच्छा लगता है, देर तक यूं ही  बेवजह उसकी तरफ  देखे रहना अच्छा लगता है, उसका नाम पुकारने पर, पहाड़ से गूंज कर, लौटने वाली आवाज़ को सुनते रहना, अच्छा लगता है.  - शालिनी

पहाड़ बुलाता है

पहाड़ बुलाता है, हर गुजरते हुए, आदमी को, फैलाता है, अपनी गोद, बिछा देता है, अपना आंचल... देखो, पहाड़ पालता है, अपने गर्भ में, ऊंचे देवदार को, उफनते नदी-नालों को,  और अपनी ओट में  उगा लेता है काई.. तो, क्या? हम और तुम, नहीं पल पाते, इसके आंचल तले??? - शालिनी पाण्डेय 

आगमन

आगमन, जीवन किरणों का.. प्रस्फुटन, नव पल्लवों का.. सृजन, नव कथाओं का.. उद्भव, श्वेत झरनों का.. विस्तार,  अंतर संवादों का.. आदान-प्रदान,भावनाओं का.. महकना, रजनीगंधा का.. सब परिणाम है, तुम्हारे प्रेम में होने का.. -  शालिनी पाण्डेय 

सरु चलो ना

किराये के मकान की बालकनी से, बाहर झांकते हुए, एक दिन, उसने पूछा - सरु, कौन सा संगीत, सुनाई देता है, तुम्हें यहां ? कौन सा नजारा, दिखता है, किवाड़ों को  खोलने पर ? कंधे पर,  थोड़ा सा खुद को टिकाकर, वो बोला- देखो ये दीवार... कितनी बड़ी है, लेकिन... एक भी  दूब का तिनका  नहीं उग पाता  इस पर... कितनी  विषाक्तता है, साँसों में, भीतर इन  कोरी दीवारों के..... कुछ देर,  वो मौन रहा.... और सांसे जुटाकर   पुनः बोल उठा-  सरु चलो ना, लौट चलते है, वहाँ को, जहां से आरंभ हुए... चलो ना, लौट चलते है, अपने पहाड़ की ओर.... -शालिनी पाण्डेय

हिमालय हूँ मैं

चीड़, ओक, देवदार की खुशबू लिए कर रहा सुगंधित श्वासों को, बुरांश, ब्रह्मकमल के फूल खिला महका रहा घर-आंगन को, मोनाल, ट्रैगोपान की चहक से रोज सवेरे जगा रहा तुमको, किलकारी भड़ल, हिम् तेंदुए की  पाल रहा तुम्हारे आंचल में, बन हिमाद्रियों का जन्मदाता  कर रहा सुसज्जित केशों को, पंच बद्री, पंचकेदार का रूप लिए ध्यान और तप का स्थान हूं मैं, पूनम के शशि सा तेज लिए, सुशोभित तुम्हारे ललाट पर, रहूंगा सतत ही मौन खड़ा, तुम्हारी प्रहरी, हिमालय हूं मैं। -शालिनी पाण्डेय 

बचपन

बचपन  चाहे किसी का भी हो अमीर का या गरीब का, वो ख़्वाब देखता है, उसे  अनगिनत ख़्वाब देखने दो, क्योंकि बचपन बनाता है एक सुदृढ़ नींव  कल्पनों की, बड़ा होने पर  जिसपर खड़ी होती है  इमारत यथार्त की। - शालिनी पाण्डेय 

पहाड़ को जाती सड़क

जंगल को  दो हिस्सों में बांटती ये सड़क सीधी  मेरे पहाड़ को जाती है, जहां अब भी बसती है गाड़, गधेरों, बाघ, बण, कौतिक, ब्या, त्यार के बारे में सुनाई मेरी आमा की कहानियां, जो जीवन पर्यंत  उन्होंने बटोरी, मेरे लिए ताकि सैंंन में रहकर भी मैं बनी रहूँ पहाड़ी, और उनके चले जाने के बाद भी देख पाऊं उन्हें  पहाड़ के किसी डाणे में  घास काटते हुए। - शालिनी पाण्डेय  For those who don't understand pahadi गाड़: Small seasonal river stream गधेरा: an abrupt or steep fall बण: Forest कौतिक: Fair ब्या: Marriage त्यार: Festival आमा: Grandmother सैंन: Plain area डाणा: Low mountain

मां

अपनी संतानों द्वारा उपेक्षित किये जाने पर भी स्वम् को प्रदत्त कर्तव्यों का निर्वहन माँ नहीं भूलती । - शालिनी पाण्डेय 

चुपके से

चुपके से बिना पैरों के निशान छोड़े, रिश्तों की  इस कोलाहल भरी दुनिया से कहीं दूर  निकल जाने को जी चाहता है।  - शालिनी पाण्डेय

झरना

थके हारे से दिनों में, जब नहीं समझ आता, कि  प्राण क्यों जीवित हैंं ? तब, किनारा पाने की आस में, उदासियां निचोड़ कर लिखे रात्रिगीत को सुनाने  मैं तुम्हारी ओर आती हूं, लेकिन,  दरवाज़े के ठीक सामने ठिठक जाती है चाल, मौन धारण कर लेते है शब्द..... और  गीत को  अपने भीतर समेटकर, मैं इस डर से  लौट आती हूं कि.... कहीं मेरी कलम से निकला  उदास स्याहियों का ये झरना देहली लांघ कर,  तुम्हारे भीतर ना बह निकले। - शालिनी पाण्डेय

ताउम्र

ताउम्र  सूरज बन कर मैं तुम्हारे छितिज पर उगता रहूंगा और  रोशन करता रहूंगा अंधेरे से कुम्हला रहे तुम्हारे हिस्सों को।। - शालिनी पाण्डेय 

राजा और रानी

हर दिन ये खेले उल्लास भरे मेले, मिट्टी का घर बना जश्न मना लेते है, कागज़ के पंख लगा  उड़ लेते है,  ये सुनते हुए कहानी भूल जाते है परेशानी  और खुद ही बन जाया करते है राजा और रानी। बाल दिवस की शुभकामनाएं । - शालिनी पाण्डेय

तुम्हारा श्रृंगार

मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं कुछ अच्छा लिखना चाहता हूं तुम्हारे साथ नदी के तीर बैठकर एक नया सवेरा बुनना चाहता हूं। पहाड़ की वादियों, झरनों,  बादलों, पिरुल और बांज को  एक माला सा पिरोकर तुम्हारा श्रृंगार करना चाहता हूं। हिम् आच्छादित शिखर में चांद और सूरज को परोस गंगा की लहरों को समेटकर  तुम्हारा सिरमौर बनना चाहता हूं। - शालिनी पाण्डेय

सलीका

तेरे बदन की ओस से भीगी हुई साँसें, जो रेत के कणों को जोड़कर,  मेरी शक़्ल को मूर्त बनाती है.... नदी के छोर सी तेरी बाहें, जो इच्छाओं को स्वछंद बहाती हुई, मुझे बचाये रखती है बिफरने से..... और हर वक़्त साथ चलता, तेरी खुशबू से महकता ये आशियाँ, जीवन को अहसास देता है कि तू एक सलीका है, जिंदगी जीने का..... - शालिनी पाण्डेय

चलो ना मेरे साथ

तुम चलो ना मेरे साथ किसी पहाड़ पर, वहीं बसायेंगे संसार प्यार और विश्वास का ।। वहां बर्फ की नदियां सींचती होंगी हमारे आँगन को, चीड़ के पत्तों से पटे रास्ते ताकते होंगे हमारी राह को, प्रभात किरणें आतुर होंगी हमारा माथा चूमने को, देवदार की छाव फैली होगी हमें बाहों में कसने को, वहां नीले अम्बर की चादर ओढ़े हरे बुग्याल के सीने से लगकर हम लेट लेंगे, नदियों के बहाव से उत्पन्न संगीत को सुनेंगे, और संध्याकाल में चोटी से उतरते सूर्यास्त को छितिज पर बैठकर विदा देंगे । - शालिनी पाण्डेय

बुनना

किसी रोज मैं घण्टों पियानो के पास बैठ कर संगीत बुनने का प्रयास करती हूं, सिर्फ इसलिए कि मुश्किल छणों में इसकी धुन से तुम्हारे मन को गुंजायमान कर सकूँ । - शालिनी पाण्डेय

अक्टूबर की सुबह

हेलो, अक्टूबर की सुबह मैं आज बिछड़ रही हूं इन दीवारों से जिन्होंने मुझे सहेजे रखा था मार्च की अंधेरी रातों में आज मैं बिछड़ रही हूं उस एकांत की स्याही से जिसके रंगों में सरोब...

पतन का भूकंप

बेकारी, लाचारी और अकर्मठता कितने खतरनाक गुण है अगर एक साथ किसी के हिस्से आ जाये तो पतन के भूकंप का केंद्र जल्दी ही उसको गले लगाएगा। - शालिनी पाण्डेय

बरसात की शाम

लो आ गयी,  तुम्हारी याद को चाय में घोलती, बरसात की ये शाम.... जो गाते हुए बौछारों का संगीत, मेरी खिड़की के बाहर, धीमे-धीमे गुजरती है... और अंधेरे होने तक, गड़ाए रखती है, मेरी आंखों को, उस राह की ओर... जिसपे एक रोज तुम मिलने आये थे.... ~ शालिनी पाण्डेय

बारिश की बूंदें

नन्ही नन्ही बारिश की बूदें, आ बैठती है फूलों की कोमल पंखुड़ियों पर और चमक उठती है मेरी आंख में मोतियों सी।। -शालिनी पाण्डेय

तुम जब मुझमें उतर आते हो

तुम जब मुझमें उतर आते हो, आंखों को नम कर जाते हो... खाली पड़े घर के कोनों पर, अपने हँसी बिखेर जाते हो... डायरी के कोरे पन्नों पर, कहानी सी लिख जाते हो... रुक सी गयी समय की सुइयों पर, बेल जैसे फैल जाते हो... कोरे बदन के कैनवास पर, प्यार को उकेर जाते हो... तुम जब मुझमें उतर आते हो, रूह को संतृप्त कर जाते हो... - शालिनी पाण्डेय

जब रात का अंधेरा हटेगा

जब रात का अंधेरा हटेगा तेरा चेहरा साफ दिखेगा शिकन की सब रेखाएं माथे पर इकठ्ठी हो आएगी काले बालों के बीच फंसे सफेद रेशम चमक उठेंगे हथेलियों पर छपे संघर्ष के निशान उभर आएंगे ...

फ़कीरी

फ़कीरी का जीवन है अनुभवों से भरा हुआ और अमीरी का अनुभवहीनता से भरा हुआ। फ़कीरी का प्यार है भक्ति से उपजा हुआ और अमीरी का लोभ से उपजा हुआ फ़कीरी की दोस्ती बनी है मासूमियत से और अ...

खाली रातों में

खाली रातों में सन्नाटे के बीच अंधेरे से घिरी एक देह करवटे बदल रही है उसकी आंखों की नींद गायब है और दिल के दरवाजे पर किसी दस्तक की इंतजारी है - शालिनी पाण्डेय

इंतजारी

बहुत भारी हो गए अब उठाये नहीं जाते ना ही बहाये जा सकते है आसूँ तेरी इंतजारी के। - शालिनी पाण्डेय

छू जाओ

कई बार मैं एकांत में बैठे घंटों तक तुम्हें एक टक देखती रहती हूं इस आस में कि साँसों के रास्ते भीतर आ कर तुम मेरी रूह को बस एक दफा छू जाओ। -शालिनी पाण्डेय

भावुक हो जाना

अगर हम सजीव है तो भावुक हो जाना एक स्वाभाविक घटना है वैसे ही जैसे कि उत्साहित हो जाना, बशर्ते सभ्यता के ढोंग ने हमें पूर्णतः अस्वभाविक ना बना दिया हो। - शालिनी पाण्डेय

गुरु

प्रेरणा का स्रोत है गुरु आशा की लौ है गुरु सृजनात्मकता का नींव है गुरु विश्वास की उड़ान सिखाता है गुरु हिम्मत का पाठ पढ़ाता है गुरु अतः नमन का सदैव हकदार है गुरु ~ शालिनी पाण्...

पानी के झरने

पानी के झरने जब तुम ऊँचाई से गिरते हो तो बूंदों का एक धुआँ सा उड़ता है जिसमें उभर कर आती है ढेर सारी तस्वीरें उनमें से एक तस्वीर है मृत्यु की जो मुझे साफ नजर आती है, तस्वीर की गह...

उजड़ा सा पहाड़

टूटी शाखों पर जब नई कोपलें निकल आती हैं निर्बाध बहते झरने से जब राही अपनी प्यास बुझाता है जंगल के बीच वृक्ष की छांव में जब थका हुआ चरवाहा सुस्ताता है नदी की छोटी धार पर जब को...

बचपन के साथी

वो बेबाक बातों सी कल्पना वाली दुनिया जब कम थे पैसे ज्यादा थी खुशियां मासूमियत लिए दिल होते थे जब पाक वादों के बिना भी बन जाता था विश्वास नन्ही सी अपनी दुनिया लगती थी तब काफ...

राख

हर रात को राख की तरह पूरी जल कर सो जाती हूँ सुबह उस राख के बीचों बीच एक अंकुर निकलता है आने वाले दिन के लिए जो रात तक फिर से जल कर राख हो जाता है। ~ शालिनी पाण्डेय

क्यों ना

क्यों ना नीरस उदासी वाले पन्नों को उखाड़ फेंकने के बजाय एक छन्नी की तरह जीवन में लगाया जाये ताकि कुछ एक लोग थोड़ा और करीब आ पाये, और कुछ थोड़ा दूर चले जाये। ~ शालिनी पाण्डेय

बहुत डरावना है

बहुत डरावना है महसूस कर पाना साँसों की अधीरता बहुत डरावना है महसूस कर पाना जीवन की भंगुरता बहुत डरावना है महसूस कर पाना जीने की विवशता। ~ शालिनी पाण्डेय

रोज थोड़ा

अभी कुछ दिन पहले की बात है जब समेटा था यार के विश्वास को तो खो दिया था स्वार्थ को जब समेट रही थी प्रार्थना की ऊर्जा को तो खो रही थी काले डर की छाया को जब बोने जा रही थी प्यार के बी...

अनजाने अवसाद से

धूल को देखा है कभी कैसे वो चुपचाप आकर बैठ जाती है अलमारी में रखी किताबों के ऊपर जो कई दिनों से नहीं पढ़ी गई और हमें जरा भी भनक नहीं लगती धूल के किताब में आ जाने की कई दिनों बाद ज...

देखो

तुमने विरह का संगीत सुना है अब मिलन का जश्न भी देखो तुमने मुझे अनाशक्त देखा है लो अब अब आशक्त भी देखो। ~ शालिनी पाण्डेय

जन्म

विरह जब तक तक था तो कविताएँ जन्म लेती थी अब मिलन आया है तो आकांक्षाएं जन्म ले रही है। ~ शालिनी पाण्डेय

रात भर

टूट टूट कर नींद तेरी यादों से बिस्तर भरती रही रात भर धड़कन तेरा नाम गुनगुनाती रही रात भर लब एक बोसे को तड़पते रहे रात भर बदन तेरे आगोश के लिए सिमटता रहा रात भर और साँसे बिछड़न का ...

तेज हवा

तेज हवा सा तू टकराता है बारिश की बूंद बन छू जाता है सोये नन्हें बीजों को जगाकर अंकुरित हो पेड़ बन आता है । ~ शालिनी पाण्डेय

अंधेरे में

अंधेरे में ख़्वाब बुनती हूं, विरह का संगीत सुनती हूं, यादों के टुकड़े परोसती हूं, दर्द के पलों को चुनती हूँ, अपनी रूह को बिछाती हूं तेरे अहसास को ओढ़ती हूं, तुझसे जुदा होने पर मैं ऐसे ही तुझे साकारती हूं। ~ शालिनी पाण्डेय

तब और आज

हम छोड़ आये निर्बाध बहती नदियां आकाश चूमते पहाड़ हरे भरे चीड़ और देवदार कर आये पलायन आँगन में बहती ठंडी बयार से, लकड़ी और पत्थर के घरों से , छत पर टहलते सफेद बादलों से, जमीन के गर्भ से निकले धारों से, मडुवे और कौणी वाले अनाज से, हिसालू, किलमोडा, काफल से, और  अब हम रहते है ईट के तपते भट्टों के भीतर ज़हरीले धुएं के बीच पीते है बिसलरी का पानी खाते है डोमिनोज़ का पिज़्ज़ा और बातें करते है पेड़ लगाने की, पर्यावरण को बचाने की। ~ शालिनी पाण्डेय

मैं चाहती हूं

मैं चाहती हूं कि तेरी डायरी हो जाऊं जिसपे तू अनकही बातें लिख पाए मैं चाहती हूं कि चाय का प्याला हो जाऊं जिसे हर रोज तू अपने लबों से लगाए मैं चाहती हूं कि तेरे बिस्तर की चादर ह...

तेरे होने ने

जब तू नहीं था तो जीवन रूखा था ना कविताएँ थी ना गीत थे ना सावन था ना रंग थे तेरे होने ने मुझे रूखे जीवन की छाती में बीज उगाने का हौसला दिया तेरे होने ने मुझे कविताओं के अर्थ दिय...

प्यार का पन्ना

जीवन का ये पन्ना जितना कोरा है उतने ही रंग भी लिए हुए है एक ओर विरह की खाई दूजी ओर मिलन का शिखर लिए हुए है प्रियतम के मिलने की खुशी के साथ खुद की बेनकाबी का डर भी लिए हुए है प्यार जीवन का वो पन्ना है जो खूबसूरत और खतरनाक साथ में है । ~ शालिनी पाण्डेय

बारिश

देखो आज सारा दिन टप-टप करती संगीत बजाती हुई बारिश गिरती रही और साथ में तुम्हारी यादों को घोल - घोल मेरे आँगन में जमा करती रही । ~ शालिनी पाण्डेय

जुड़ा हुआ

क्या तूने सोचा कभी कि ये तेरी और मेरी बातें कभी ख़त्म क्यों नहीं होती ? मुझे लगता है कि ये बातें भर रही होती है हमारे बीच की दूरियों को लफ़्ज़ों से और बना रही होती है एक पुल फासलो...

दूरियां

जब अंदाज़ा ना था करीबियों का तो ये दूरियां भी खलती ना थी लेकिन उस रोज से जब तू गले लगाकर बोसा देकर चला गया तो ये दूरियां खलने लगी। ~ शालिनी पाण्डेय

जोड़ते हुए

कभी मकान जोड़ते कभी दुकान जोड़ते कभी दहेज जोड़ते हुए, अनेक पिताओं की उम्र यूँ ही बीत जाती है मेहनत में शरीर तोड़ते हुए। ~ शालिनी पाण्डेय

पर तुम तो

हाँ, हाँ मुझे अब कोई डर नही हैं तुम्हें खोने का, खोया उसे जाता है जो हमसे पृथक हो, पर तुम तो मेरे भीतर की चेतन साँसों जैसे हो, तुम्हें तो उसी दिन खोना होगा जब मैं खुद को ही खो दूंग...

जीने का तरीका

अगर केवल यथार्थ में जीना ही जीने का सर्वोत्तम तरीका होता तो क्यूँ मौत के करीब आता हर व्यक्ति जीना चाहता है बचपन के किस्सों में आखिर बचपन तो जीवन का सबसे यथार्थवादी पड़ाव नह...

जीवन

निश्चय ही तुम टकराना चट्टानों से और काट लेना उन्हें अपने वेग से। बहा ले जाना इस वेग में अवसादों को और धीमे होकर किसी मोड़ पर छोड़ जाना। जो कोई भी साथ चले लिए उसे तुम, बढ़ते जाना, ब...

प्लेटफॉर्म

रेल के प्लेटफॉर्म पर जहाँ यात्रियों को लिए ट्रेन कुछ देर रुकती है इस प्लेटफॉर्म पर बहुत शोर होता है यात्रियों की बातों का शोर विक्रेता के चिल्लाने का शोर ट्रैन के हॉर्न क...

इंतजार

लंबे इंतजार के बाद आना, वो आना चाहे बरसात का हो या महबूब का बहुत ही सुखदाई होता है । ~ शालिनी पाण्डेय

प्यार

प्यार जब छू लेगा तुम्हारे अन्तर्मन को तो वो पवित्र कर देगा हर एक कोने को तब मन ही बन जायेगा मंदिर फिर ना गंगाजल लाने हरिद्वार जाना होगा ना ही ईश्वर दर्शन को देवालय में । ~ शाल...

गहन अनुभूति

प्यार की एक झलक को महसूस कर पाना प्यार बनकर तुम्हारा मेरे जीवन में आना मेरे जीवन की अब तक की सबसे गहन अनुभूति है। ~ शालिनी पाण्डेय

फिक्र

मालूम है मुझे कि फिक्र तुम्हें भी रहती है मेरे हाल की बस तुम्हें जताना नही आता। ~ शालिनी पाण्डेय

Irony of dreams

I sometime want to be perfect in this imperfect life. I sometime want to be complete in this incomplete life. I sometime want to be immortal in this mortal life. See it's all I have a series of  Irony of dreams for life. -~ Shalini Pandey

चले जाओ

तुम चले जाओ जहां भी तुम जाना चाहो मैं नहीं रोकूँगी तुम्हें। सोचती हूँ तुम्हें रोक कर भी क्या करूँगी, और जब मैं खुद ही रुकना नहीं चाहती तो तुम्हें किस हक़ से रोक लूँ ? ~ शालिनी पा...

मौन

मौन जो टूटता है भोर की किलकारियों से फिर लौट आता है सांझ के ढलते ही। ~ शालिनी पाण्डेय

यूँ भी

कई बार यूँ भी हुआ कि उम्र बीत जाती है यहाँ इंसान की क्षणिक भंगुर जीवन को जी पाने के प्रयास में। ~ शालिनी पाण्डेय

सदा

जब मैं नहीं रहूंगी तब भी तुम रहोगे सदा मेरी कविता के अल्फ़ाज़ों में मेरी कविता के जज्बातों में। ~ शालिनी पाण्डेय

भोर

भोर के वक़्त तुम्हारी याद रहती है मेरी अधखुली आँखों में जो तलाशती है तुझे मुझमें ही कहीं। ~ शालिनी पाण्डेय

अतीत का पन्ना

फटे-पुराने लिबास को बदल लेने पर अक़्सर इंसान को ग़लतफ़हमी हो जाती है, कि भद्दा सा दिखने वाला अतीत का पन्ना अब उसके जीवन में नहीं रहेगा । ~ शालिनी पाण्डेय

नौकरी

नौकरी देखो तो तुम्हारा कद कितना बड़ा हो गया है, तुम्हारी ख़ातिर हमने बिना आँसू बहाये अपनी नदियों, पहाड़ों और घरों से पलायन कर लिया । ~ शालिनी पाण्डेय

बातें

बातें भी कितनी अजीब होती हैं कभी ना होते हुए भी बन जाती हैं और कभी होते हुए भी नहीं समझी जाती हैं। ~ शालिनी पाण्डेय

आजकल की शिकायत

आजकल हर किसी को दूसरों से शिकायत है कि कोई उन्हें नहीं समझता उन्हें कोई ये बताये कि मुश्किल होता है सिर्फ चेहरा देख कर शख़्सियत का अंदाजा लगाना समझने और समझाने के लिए चेहरे...

अपना आशियाँ

गौरैया जैसे हम भी बुनेंगे अपना आशियाँ एक रोज़ किसी पहाड़ी पर देवदार के ऊंचे पेड़ पर बादलों के बीच और बातें किया करेंगे आसमा से ज़मी पे रहकर। ~ शालिनी पाण्डेय

तुम्हारी ओर

जब मैं चल रही होती हूं सड़क पर हवा को काटते हुए मुझे लगता है जैसे मैं तुम्हारी ओर ही आ रही हूं दूरियों को मिटाते हुए। ~ शालिनी पाण्डेय

इस जीवन में

बिखरे से इस जीवन में प्यार मुझे समेटे हुए है मेरे जिस्म के भीतर मेरी रूह के अंदर। - शालिनी पाण्डेय

गहरा

तुम्हारे पर्वत हो जाने पर मेरा घाटी हो जाना स्वाभाविक है, क्योंकि तुम्हें ऊंचा उठाने के लिए मेरा गहरा जाना भी तो जरूरी है। - शालिनी पाण्डेय

जीवन की धूप

जीवन की धूप में जलकर मन उजाड़ सा हो गया है हे पर्वत, तुम मुझे अपनी छांव में ले लो और मेरे अंतर्मन को पुनः हरा कर दो। - शालिनी पाण्डेय

वक़्त की चाल

वक़्त की चाल कुछ टेड़ी सी होती है, जैसे ही कदम मिलाने की कोशिश करो, ये तुम्हें उलझाकर फ़िर आगे निकल जाती है। - शालिनी पाण्डेय

जब कभी

माना धूप जैसे मैं कभी उड़ा ले जाती हूँ तुम्हारे रंगों को लेक़िन फ़िर मैं आती भी तो हूँ बसंत बन उन रंगों को नया कर तुम्हें लौटाने। ~ शालिनी पाण्डेय

हिमालय की घाटी

हिमालय की घाटी तुम माँ जैसे फिर मुझे अपने गर्भ में रख लो और नौ माह बाद अपनी तलहटी में ही किसी नदी के रूप में पुनर्जन्म दे दो । - शालिनी पाण्डेय

पंख

यथार्थ मानस को डराता है और कल्पना पंख उगाती है डर से पार पाने के लिए। ~ शालिनी पाण्डेय

लेखन कर्म

लेखन कर्म के लिए शब्द बहुत जरूरी हैं लेकिन जो सबसे जरूरी है वो है संवेदना जो लेखक को शब्द चुनने और बुनने की कला से परिचित कराती है। - शालिनी पाण्डेय

त्वचा का रंग

एक लड़की,  जो जन्मी है  त्वचा का गहरा रंग लिए, जिसने, जीवनपर्यन्त तराशा है , अपने अंतर्मन को.... आज भी,  सुंदरता के, तंग पैमाने की वजह से, गोरी देह के साथ जन्मी लड़की की तुलना में, सुंदर नहीं कही जाती..... - शालिनी पाण्डेय

हमारे बीच

जब तेरे और मेरे बीच में मोहब्बत है तो फ़िर ये शर्म और पर्दा हमारे बीच कैसे? - शालिनी पाण्डेय

जब मैं खुद को अलग पाती हूँ

कई बार जब मैं खुद को अलग पाती हूँ अन्य लड़कियों से भौतिक नहीं वैचारिक, बौद्धिक और कल्पना के स्तर पर तो मुझे ये  अहसास कराया जाता है कि अलग राह चुनना यूँ तो सही है, ... पर............ सुरक्ष...

मैं नहीं चाहती

मैं नहीं चाहती, बहुत बड़ा संसार अपने लिए, मैं चाहती हूं, बहुत सारी संवेदनाएं अपने लिए, और हो सके तो एक हमराही, इन्हें सांझा करने के लिए। - शालिनी पाण्डेय

हमारे आस पास

यहाँ हमारे आस पास बहुत कम लोग है जो कविता की भाषा समझते है और जो कविता के मर्म को जान पाते है, क्योंकि ज़्यादातर तो स्थूल आवश्यकता की पूर्ति में अपनी जान उलझाकर जो जानने योग्...

लिखना

लिखना एक प्रयास है अंतर्मन की बेचैनियों को शक़्ल देकर दूसरों से रूबरू कराने का लिखना एक लत है सिगरेट जैसे जिसके धुएं से तुम मदहोश हो ना चाहते हुए भी लिखना एक रिश्ता है मोहब...

अल्फ़ाज़

कुछ अल्फ़ाज़ पुल जैसे होते हैं जो दो मूक संवेदनाओं को जोड़ने का काम करते हैं ।। - शालिनी पाण्डेय

तुमको खोना

हाँ हाँ मुझे डर नहीं है अब तुमको खोने का, खोया उसे जाता है जो हमसे पृथक हो, पर तुम तो मेरे भीतर की चेतन साँसों जैसे हो, तुम्हें तो उसी दिन खोना होगा जब मैं खुद को ही खो दूंगी। -शाल...

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे

क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सावन जो तुम्हारे इंतज़ार में बिना बरसे ही लौट गया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे वो सवेरा जोे दीदार की चाह में कभी हो नहीं पाया क्या तुम लौटा पाओगे मुझे...

स्त्री और पुरुष

मानो एक ही रेखा के दो छोर से है स्त्री और पुरुष जो कि अपने अड़ियल पन में विपरीत दिशाएँ अपनाकर   फासले की खाईयों को जन्म देते है और अपने लचीले स्वभाव में अनुकूल दिशाएँ अपनाकर...

आंखें ख़्वाब पालती है

पलकों से खुद को ढक कर, आंखें ख़्वाब पालती हैं, पलकें उठाकर, आंखें, यादों के धागे बुनती हैं... और बीते लम्हों के टुकडें लिए,यादें  जीवन भर साथ चलती हैं।। - शालिनी पाण्डेय

धुंधला सा चाँद

धुंधला सा चांद आया है आज मेरी खिड़की पर, इसका चेहरा ठीक वैसा ही दिखता है जैसे तुम्हारा चेहरा था उस रोज जब तुम पहली बार मिलने आये थे बीमारी का पीलापन लिए। - शालिनी पाण्डेय

तुम जब जागोगे

तुम जब जागोगे तो शायद मैं तुम्हारे शहर से दूर निकल आयी होंगी तुम अधखुली आंखों के ख़्वाब में मुझे देखना और मैं यादों में रखी तुम्हारी सूरत निहार लूंगी। - शालिनी पाण्डेय

तुम्हें क्या कहूं

तुम्हें क्या कहूँ ? दोस्त, हमराही या  हमसफ़र... सोचती हूं, तुम्हें कुछ ना कहूँ, सिर्फ कहने से ही तो होना नहीं होता। --शालिनी पाण्डेय

नारी

हर वाक़ये पर कैसे तुम मुझे अलग अलग तराजुओं में तोल देते हो आज मैं तुमसे विनती करती हूं बाहर की सूचनाओं को आधार बना मुझे तोलना बंद करो जब तुमने कभी मेरे भीतर की चेतना की ओर झा...

कुछ यादें

कुछ यादें कोयले जैसी होती हैं जो वक़्त के दबाव को सहकर हीरे में तब्दील हो जाती हैं। - शालिनी पाण्डेय